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मण्डलों का निरूपण
८. विहृत
दक्षिणो विच्यवीभूयः क्रमादुत्स्पन्दितस्ततः । 1547 पार्श्वक्रान्तोऽप्यथो वामः स्पन्दितस्तदनन्तरम् ॥१४५२॥ भवेत् सव्योऽङ्घ्रिरुवृत्तो वामोऽलातत्वमागतः । 1548 सूच्यज्रिर्दक्षिणो वामः पार्श्वक्रान्तत्वमाश्रितः ॥१४५३॥ आक्षिप्तो दक्षिणो यत्र भ्रान्त्वा सव्यापसव्यतः । 1649 आश्रितो दण्डपादत्वमथः वामः क्रमाद् यदि ॥१४५४॥ सूच्य िभ्रमरश्चाथ भुजङ्गात्रासितोऽपरः । 1550
अतिक्रान्तस्तु वामः स्यात् तत् तदा विहृतं मतम् ॥१४५५॥ दाहिना पैर विच्यवा चारी से युक्त होकर क्रमशः स्पन्दिता तथा पार्श्वक्रान्ता से युक्त हो; तदनन्तर बायाँ पैर स्पन्दिता से युक्त हो, दाहिना पैर उदवत्ता से युक्त हो; बायाँ पैर अलाता से युक्त हो, दाहिना पैर सूचो से युक्त हो; फिर बायाँ पैर पावक्रान्ता से यक्त हो, दाहिना पैर आक्षिप्ता से युक्त होकर दायें-बायें घूमकर दण्डपादा से युक्त हो जाय; फिर बायाँ पर क्रमश: सूचो तथा भमरी से युक्त हो; दाहिना पैर भुजंगत्रासिता से युक्त हो और बायाँ पर अतिक्रान्ता से युक्त हो; तो विहुत आकाशमण्डल होता है। ९. ललित दक्षिणश्चरणः सूची वामोऽपक्रान्ततां गतः ।
1551 पार्श्वक्रान्तो भवेत् सव्यो भुजङ्गात्रासितोऽप्यसौ ॥१४५६॥ अतिक्रान्तः पुनर्वामः स्यादाक्षिप्तस्तु दक्षिणः । . 1552 वामः क्रमादतिक्रान्त ऊरुवृत्तोऽप्यलातकः ॥१४५७॥ पार्श्वक्रान्तो दक्षिणः स्यात् सूची वामोऽथ दक्षिणः। 1553 अपक्रान्तोऽथ वामोऽघ्रिरतिक्रान्तत्वमाश्रितः ।
सञ्चरेल्ललितं यत्र तन्मतं ललितं बुधैः ॥१४५८॥ 1554 दाहिना चरण सूची से युक्त हो, बायाँ चरण अपक्रान्ता से युक्त हो; दाहिना चरण पार्श्वक्रान्ता तथा भुजंगत्रासिता से युक्त हो, बायाँ चरण अतिक्रान्ता से युक्त हो; पुनः दाहिना आक्षिप्ता से युक्त हो, वायाँ क्रमशः अतिक्रान्ता, ऊरूद्वत्ता तथा अलाता से युक्त हो; फिर दाहिना पार्श्वक्रान्ता से और बायाँ सूची से मुक्त हो; तदनन्तर
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