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मुस्वाध्यायः
१०. समकतयञ्चित
समपादं समाधाय यदा कृत्वाञ्चितं नटः । 1371
रचयेत्स्वस्तिको तत्सत्समकर्मरिकाञ्चितम् ॥१३२५॥ जब नट सम स्थित पैर की रचना करके अञ्चित करण करने के उपरान्त स्वस्तिक हाथों का निर्माण करता है, तब समकर्तयञ्चित करण होता है । ११. बलिबन्धाञ्चित कृत्वाग्रे गजदन्तं तु विदध्यादञ्चितं यदा ।
1372 बलिबन्धाञ्चितं ज्ञेयं तदा करणकोविदः ॥१३२६॥ जब पहले गजदन्त नामक हाथ की रचना करके अञ्चित करण किया जाता है तब उसे करणवेत्ता विद्वानों को बलिबन्धाञ्चित करण जानना चाहिए । १२. क्षेत्राञ्चित
प्रादौ प्रान्ते च यत्र स्यादञ्चितस्योत्कटासनम् । 1373
इदं क्षेत्राञ्चितं प्रोक्तमशोकेन महीभुजा ॥१३२७॥ जहाँ अञ्चित करण के आदि और प्रान्त में उत्कटासन किया जाता है, वहाँ राजा अशोकमल्ल ने क्षेत्राञ्चित करण बताया है। १३. स्कन्धाञ्चित
रचयित्वाञ्चितं यत्र स्कन्धालिङ्गिन्तभूतलः । . 1374 तिर्यगुल्लालयन्पादाववतिष्ठेत . सत्वरम् ।
इदं स्कन्धाञ्चितं प्रोक्तं करणं प्राक्तनैर्बुधः ॥१३२८॥ 1375 पुरातन आचार्यों का मत है कि जहाँ अञ्चित की रचना करके कन्धों से पृथ्वी का आलिंगन किया जाय और तिरछे पैरों को सहलाते हुए शीघ्रता से उठा जाय; तो वहाँ स्कन्धाञ्चित करण होता है। १४. अलग
अधोमुखः समुत्प्लुत्य निपत्य पुरतो यदा ।
कुक्कुटासनमाबध्य स्थितश्चे [दलगं तदा] ॥१३२६॥ 1376 जब मुंह नीचे की ओर किये उछलकर तथा सामने गिरकर एवं कुक्कुटासन बाँधकर स्थित हुआ जाय, तो वहां अलग करण होता है।
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