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उत्प्लतिकरणों का निरूपण
५. भैरवाञ्चित
ऊरुस्थितकपादस्योत्प्लवने भैरवाञ्चितम् ॥१३१६॥ ऊरु पर एक पैर को रखकर उछलने से भैरवाञ्चित करण होता है । ६. शान्तपादाञ्चित
प्राक्रम्यासद्वयेनोवों भ्रामयित्वा तु दक्षिणम् । 1366 अघ्रिं तदीयपृष्ठेन वामा स्तु निपीडयेत् ॥१३२०॥ जङ्घामध्य [मथा] रच्याश्चितं कृतविवर्तनम् । 1367
पादावुल्लालयेद्यत्र भ्रान्तपादाञ्चितं त्विदम् ॥१३२१॥ यदि दोनों कन्धों से पृथ्वी का स्पर्श करके दाहिने पैर को घुमाकर उसके पृष्ठभाग से बायें पैर को पीडित किया जाय; फिर घुमाये हुए अञ्चित पैर को जंघा के बीच में करके दोनों पैरों को सहलाया जाय; तो ऐसा करने से भान्तपादाञ्चित करण बनता है। ७. दण्डप्रणामाञ्चित
उत्प्लुत्याञ्चितवद्यत्र धरायां दण्डवत्पतेत् । 1368
तदुक्तं करणं दण्डप्रणामाञ्चितसंज्ञकम् ॥१३२२॥ अञ्चित करण की तरह उछलकर पृथ्वी पर डंडे की भाँति गिरने से दण्डप्रणामाञ्चित करण होता है। ८. कर्तर्यञ्चित
कर्तर्यञ्चितमेतत्स्यायनाघ्रिस्वस्तिकाञ्चितम् ॥१३२३॥ 1369 जहाँ पैरों को स्वस्तिकाकार करके अञ्चित करण बनाया जाता है वहाँ कर्तयञ्चित करण होता है । ९. लंकावाहाञ्चित
अञ्चितं रचयन्देहविवृत्योरुपराङ्मुखः । महीतले यदासीनो विदध्यादुत्कटासनम् । 1370
तदा करणमादिष्टं लङ्कादाहाञ्चिताभिधम् ॥१३२४॥ जब अञ्चित करण की रचना करते हुए शरीर को घुमाकर ऊरु की ओर से मुंह फेरकर पृथ्वी पर बैठकर उत्टक आसन लगाया जाता है, तब लंकादाहाञ्चित करण होता है।