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नत्याध्यायः
जहाँ पैर विद्युभ्रान्ता चारी में हो और दोनों हाथ भी उसी का अनुगमन करें। वहाँ विद्यदभ्रान्त करण होता है। -उद्धतस्य परिक्रमे ।
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तीव्र वेग से घमने के अभिनय में विद्युम्रान्त करण का विनियोग होता है ।
अनौचित्यात्पुरः केचिदुशन्तिचरणक्रियम् ॥१२३८॥ कुछ नाट्याचार्यों का मत है कि विद्यद्धान्त करण में पहले पैर का संचालन होना चाहिए । ६१. निशुम्भित और उसका विनियोग कञ्चितोध्रिः पाष्णिदेशे द्वितीयचरणस्य चेत् ।
1272 वक्षः समुन्नतं यत्र खटकास्य करस्य तु ॥१२३६॥ अङ्गुलिमध्यमा भाले करोति तिलकं तदा । 1273
तनिशुम्भितमाख्यातम्यदि एक निकञ्चित पैर को दूसरे पैर की एड़ी पर रख दिया जाय, छाती उठा ली जाय और खटकास्य मद्रा को हाथ की मध्यमा उँगली से ललाट पर तिलक रचना की जाय, तो उसे निशम्भित करण कहते हैं ।
-ईशाभिनयगोचरम् ॥१२४०॥ भगवान शंकर के अभिनय में निम्भित करण का विनियोग होता है। खटकास्यकरस्थाने त्रिपताकोऽथवाव हि।
1274 प्राहात्राधोमुखं सूचीकरं कोत्तिधरः सुधीः ।
उशन्ति चरणं केचित् सूची नृत्तविचक्षणाः ॥१२४१॥ 1275 पण्डित कीर्तिधर इस करण में खटकास्य के स्थान पर विपताक या अघोमुख सूची हस्त का विनियोग बताते हैं । कुछ नाट्याचार्यों का मत है कि उसमें सूचीपाद का प्रयोग किया जाना चाहिए । ६२. उरोमण्डल
बद्धां चारों स्थितावर्ता रचयन् रचयेत्करौ । उरोमण्डलिनौ यत्र तदुरोमण्डलं भवेत् ॥१२४२॥ 1276