________________
नृत्तकरण प्रकरण ८३. पार्श्वक्रान्त और उसका विनियोग
पार्श्वक्रान्ता यदा चारी पाणी पादानुगामिनौ । 1307
पाक्क्रान्तं तदायदि पैर पार्श्वक्रान्ता चारी में हों और दोनों हाथों को भी उसी मुद्रा में संचालित किया जाय; तो उसे पार्श्वक्रान्त करण कहते हैं ।
. -रौद्रभीमादीनां परिक्रमे ॥१२६८॥ रौद्र रस और भीम आदि वीर पुरुषों के अभिनय में पाश्वंक्रान्त करण का विनियोग होता है। ८४. निवेश हस्तौ वक्षःस्थितौ यत्र वक्षो निर्भुग्नसंज्ञितम् ।
1308 स्थानकं मण्डलं सद्भिनिवेशं तदुदीरितम् ॥१२६९॥ यदि दोनों हाथ छाती पर रख दिये जाँय ; वक्ष निर्भुग्न (सीधा तना हुआ) हो; और मण्डल स्थानक बना लिया जाय; तो सज्जनों के अनुसार उसे निवेश करण कहते हैं । ८५. नितम्ब
अधोमुखागुली पाणी पताको प्राप्य मूर्धनि । 1309 निष्क्रम्य परिवृत्त्योर्ध्वं स्कन्धयोः स्वीययोस्ततः ॥१२७०॥। न्यस्यान्योन्यमुखौ यत्र स्वगात्राभिमुखाङ्गुली।
1310 .. कुर्यात् नितम्बहस्तौ तनितम्बकरणं मतम् ॥१२७१।। यदि दोनों पताक हस्तों को अधोमुख करके शिर पर रख दिया जाय; तदुपरान्त उन दोनों हस्तों को अपने दोनों कन्धों के ऊपर निकाल कर घुमा दिया जाय; फिर दोनों को आमने-सामने करके उनकी उँगलियों को अपने शरीर के सम्मुख रख दिया जाय; और उन्हें नितम्बाकार बना दिया जाय ; तो उस मुद्रा को नितम्ब करण कहते हैं। ८६. हरिणप्लुत और उसका विनियोग
हरिणप्लुतया चार्या भवेतां यदि हस्तकौ । खटकामुखदोलाख्यौ तदेतद्धरिणप्लुतम् । .
1311
३२३