________________
नृत्तकरण प्रकरण
उक्त सूचि करण यदि एक अंग से बनाया जाय तो उसे विद्वान् अर्धसूचि करण कहते हैं। ६९. गजक्रोडितक
दोलापादा यदा चारी करः करिकराभिधः ।
व्यापारवान् कर्णदेशे गजक्रीडितकं तदा ॥१२५३॥ 1288 यदि पैर दोलापाद चारी में और हाथ कटिहस्त में वर्तमान रहकर वे कान के पास क्रियाशील रहें, तो उसे गजक्रीडितक करण कहते हैं । ७०. पार्वजानु और उसका विनियोग
ऊरुपृष्ठे समस्याघ्रः पादश्चेत्स्थापितः परः । अर्धचन्द्रः करः कट्यां मुष्टिस्तूरसि हस्तकः । 1289
यत्रतत्पार्श्वजानूक्तम्यदि एक पैर सम (साधारण) स्थिति में हो और दूसरा पैर जाँघ पर रख दिया जाय; एक हाथ अर्धचन्द्र में कटि पर तथा दूसरा मुष्टि मुद्रा में छाती पर रख दिया जाय; तो उसे पार्वजानु करण कहते हैं ।
-सद्भिर्युद्धनियुद्धयोः ॥१२५४॥ सज्जनों के मत से युद्ध तथा कुस्ती के अभिनय में पार्वजानु करण का विनियोग होता है । ७१. गरुडप्लुत ।
लतारेचितको यत्र करौ पादस्तु वृश्चिकः । 1290
वक्षः समुन्नतं चेत् स्यात् तत् तदा गरुडप्लुतम् ॥१२५५॥ यदि दोनों हाथीं को लता रेचितक में रख दिया जाय; पैर वृश्चिक में कर दिया जाय; और छाती समुन्नत (भली भाँति उठी हुई) हो, तो वहाँ गरुडप्लुत करण होता है । ७२. गृध्रावलौनक और उसका विनियोग
पृष्ठप्रसारितस्या रङ्गुष्ठो भुवमाश्रितः । 1291
लताकरौ करौ चेत्स्यात्तदा गृध्रावलीनकम् । यदि पैर को पीछे की ओर फैलाकर घुटने को कुछ मोड़ दिया जाय और अंगूठा भूमि को स्पर्श करता हो; दोनों हाथ लता हस्त मुद्रा में हों; तो वहाँ गृध्रावलीनक करण होता है ।
.. तदवाचि महापक्षियुद्धाभिनयने बुधैः ॥१२५६॥ 1292