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नृत्याध्यायः
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५. नन्द्यावर्त
षडङ्गुलं यदैतस्य पादयोरन्तरं भवेत् । 941
वितस्तिमात्रं तत् स्थानं नन्द्यावर्त [तदोदितम्] ॥२५॥ • जब वर्धमान स्थानक के पैरों में छह अँगुल या एक बित्ते का अन्तर हो, तब उसे नन्द्यावर्त स्थानक कहते हैं । ६. एकपाद
जानुशीर्षे बहिःपार्वे समपादस्य चेत्परः ।
संश्लिष्टो बाह्यपाइँन तदा स्यादेकपादकम् ॥६२६॥ जब समपाद स्थानक के घुटने के अग्रभाग में तथा बाहर पार्श्वभाग में दूसरा पैर बाहरी पार्श्वभाग से सट जाय, तो उसे एकपाद स्थानक कहते हैं । ७. चतुरस्त्र
अष्टादशाङ्गुलं यत्र पादयोरन्तरं द्वयोः । -943
नन्द्यावर्तस्य चेत्स्थानं चतुरस्रमिदं तदा ॥२७॥ जब नन्द्यावर्त स्थानक के दोनों पैरों में अठारह अँगुल का अन्तर हो, तब उसे चतुरस्र स्थानक कहते हैं। . ८. पृष्ठोत्तानतल
एकः पश्चाद्वराश्लिष्ठागुलिपृष्ठो यदा परः । 944
समः पुरस्ताद् यत्रेदं पृष्ठोत्तानतलं तदा ॥२८॥ जब, बिलग हुई उँगलियों वाला एक पैर पीछे रहे और दूसरा सम पैर आगे रहे, तो उसे पष्ठोतानतल स्थानक कहते हैं। १. पाणिविद्ध
अगृष्ठसंहता पार्णिः पार्णिविद्धे मता सताम् ॥२६॥ 945 जब एड़ी अंगूठे से लगी रहे तो उसे पार्णिविद्ध स्थानक कहते हैं। १०. समसूचि
पाणिजङ्घोरुसंश्लिष्ट नतौ पादौ प्रसारितौ ।
तिर्यश्चौ तौ तदा यत्र तदा स्यात् समसूचि तत् ॥६३०॥ 946 जब तिरछे फैले हुए दोनों पैर एड़ी, जाँघ और घुटनों से सटकर झुक जायँ, तब उसे समसूचि स्थानक कहते हैं।
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