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नत्याध्यायः
-उद्धृतस्य परिक्रमे ॥१२०४॥ 123] वेग से चक्कर काटने के अभिनय में भ्रमर करण का विनियोग होता है। ३४. दण्डपक्ष
चारी यत्रो+जानुः स्यात् करौ स्यातां लताकरौ । तत्रैकं निक्षिपेदूर्ध्वजानूपरि यदा पुनः । 1232
एवमङ्गान्तरेणापि दण्डपक्षमिदं तदा ॥१२०५॥ जहां ऊर्ध्वजानु चारी तथा दोनों लताहस्त हों और फिर एक हाथ को ऊर्ध्वजानु के ऊपर रख दिया जाय; इसी प्रकार अन्य अंगों को भी संचालित किया जाय; वहाँ दण्डपक्ष करण होता है। ३५. नूपुर
विरच्य भ्रमरों चारीमथ नपुरपादिकाम् । . 1233 अघ्रिणकेन तत्पाणि विदध्याद्रेचितं यदि ।
परं लताकरं हस्तं तदोक्तं नूपुरं बुधैः ॥१२०६॥ 1234 यदि एक पैर से भ्रमरी नामक चारी की रचना करने के पश्चात् नूपुरपादिका नामक चारी को बनाया जाय; फिर एक हाथ को रेचित और दूसरे को लता मुद्रा में अवस्थित किया जाय, तो बुधजनों के मतानुसार उसे नपुर करण कहते हैं। ३६. ललित और उसका विनियोग
सव्यः करः केशबन्धनितम्बादिकवर्तनाः । यत्राऽथ हस्तको वामो भवेत् करिकरस्ततः ॥१२०७॥ 1235
उद्घट्टितोऽघ्रिरन्याङ्गमप्येवं ललितं तु तत् । जहाँ दायाँ हाथ केशबन्ध तथा नितम्ब आदि वर्तना में हो और बायाँ हाथ कटिहस्त मुद्रा में हो; एक पैर उद्घट्टित और अन्य अंग भी इसी प्रकार संचालित होते हों; वहाँ ललित करण होता है ।
विलासिनि सुधीधुर्याशोकमल्लेन कीर्तितम् ॥१२०८॥ 1236 नाटपाचार्य अशोकमल्ल के मत से विलासी के अभिनय में ललित करण का विनियोग होता है।
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