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चारी प्रकरण
उक्त प्रकार से यदि दोनों पैरों को सम्पन्न किया जाय, तो उसे क्रमपादनिकुट्टिका चारी कहते हैं । ८. समपावनिकुट्टिता
निकुट्टितौ समौ पादौ स्थितावङ्गुलिपृष्ठयोः ।
यदा तदा मताऽन्वर्था समपादनिकुट्टिता ॥ १०६६॥
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जब सम नामक दोनों पैर कूटे जाकर उँगलियों के पृष्ठभाग पर अवस्थित हों, तो उसे अर्थानुरूप समपावनिकुट्टिता चारी कहते हैं ।
९. डमरुकुट्टिता
पादश्चेत्कुट्टितः पूर्वं
लुठितोङ्गुलिपृष्ठतः । पश्चात्रिकुट्टितः स्थाने तदा डमरुकुट्टिता ॥ १०६७॥
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यदि एक पैर पहले कूटा जाकर उँगलियों के पृष्ठ भाग पर लोट जाय और पश्चात् स्थान पर कूटा जाय, तो उसे डमरुकुट्टिता चारी कहते हैं ।
१०. डमरुद्वयकुट्टिता
पादयुग्मकृता
सैव
डमरुकुट्टिता ॥ १०६८॥
यदि उक्त चारी में दोनों पैर उक्त प्रकार की क्रिया से सम्पन्न हों, तो उसे उमरुद्वयकुट्टिता चारी कहते हैं । ११. पुरःक्षेपनिकुट्टिता
पूर्वं पुरतोङ्गुलिपृष्ठतः ।
[ चरण: ] कुट्टितः स्थापितः कुट्टितः स्थाने पुरःक्षेपनिकुट्टिता ॥ १०६६॥
यदि पहले चरण को कूटकर आगे की ओर उँगलियों के पृष्ठभाग से स्थापित किया जाय और फिर स्थान पर कूटा जाय तो, उसे पुरःक्षेपनिकुट्टिता चारी कहते हैं ।
१२. पश्चारक्षेपनि कुट्टिता
पश्चात्क्षेपाद्भवेदेषा
पश्चात्क्षेप निकुट्टिता ॥ ११००॥
उक्त चारी में पैर को पीछे की ओर चलाने से पश्चात्क्षेपपनिकुट्टिता चारी बनती है । १३. पाश्वंक्षेपनिकुट्टिता
पार्श्वतः
क्षेपणादेव
बगल की ओर उक्त प्रकार चलाने से पार्श्वक्षेपनिकुट्टिता चारी बनती है ।
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पार्श्वक्ष पनिकुट्टिता ॥११०१॥
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