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नृत्याध्यायः
१७. उद्वेष्टन
वेष्ठयित्वा यदा ः स्यात् पृष्टदेशे प्रसारणम् ।
तदोद्वेष्टनमाख्यातमशोकेन महीभुजा ॥१०७७॥ 1096 जब एक पैर को वेष्टित करके पृष्टदेश में फैला दिया जाय, तब राजा अशोकमल्ल उसे उद्वेष्टन चारी कहते हैं । १८ उत्क्षेप
अफ़ेराकुञ्चितस्याने पृष्ठे चोत्क्षेपणे यदा ।
क्रियते जानुपर्यन्तं तदोत्क्षयोऽभिधीयते ॥१०७८॥ 1097 जब कुछ मुड़े हुए पैर को आगे और पीछे घुटने तक ऊपर उठाया जाय, तब उसे उत्क्षेप चारी कहते हैं। १९. पृष्टोत्क्षेप
योष पृष्ठ एव स्यात् पृष्ठोत्क्षेपस्तदा मतः ॥१०७६॥ यदि यह उत्क्षेप केवल पीछे की ओर ही किया जाय तो उसे पृष्ठोत्क्षेप चारी कहते हैं ।
- पच्चीस मुडुपचारियाँ (५) अङगुलीपृष्ठभागं हि नृत्तज्ञा मुडुपं जगुः ।
1098 चार्यते तेन मुडुपचारीत्यन्वर्थसंज्ञिका ॥१०८०॥ नाट्याचार्यों ने अंगुली के पृष्ठभाग को मुडुप कहा है। उससे चेष्टा प्रकट के जाती है । इसलिए (उसकी) मुडपचारी यह अन्वर्यसंज्ञा (अर्थानुरूप नाम) है।
निरुक्तिमेवं केऽप्याहुरन्ये संज्ञां डविथवत् । 1099 अन्य विद्वान् मुडुपचारी शब्द की निरुक्ति (व्याख्याविशेष) इस प्रकार करते हैं और दूसरे आचार्य डवित्थ शब्द की तरह इसकी (अव्युत्पन्न) संज्ञा बताते हैं।
मुडुपोपपदाश्चार्यः सन्ति यद्यप्यनेकशः ॥१०८१॥
तथाप्यमूर्मया काश्चिल्लिख्यन्ते कोहलोदिताः । 1100 यद्यपि मुडुप से सम्बद्ध चारियाँ अनेकानेक हैं, तथापि यहाँ आचार्य कोहल द्वारा प्रतिपादित कुछ चारियों का उल्लेख किया जा रहा है। मुडपचारी के भेद
पुरःपश्चात्सरा चारी तथा पश्चात्पुरःसरा ॥१०८२॥ १. देखिए : 'लोहितोदिता' भरतकोश, पृ० ९११ ।
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