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चारी प्रकरण
जब एकपाद स्थानक में अवस्थित होकर पृथ्वी पर रखे हुए पैर से ऊरु को पीटा जाता है, तब उसे ऊरुताडिता चारी कहते हैं ।
१३. मदालसा
यस्याभितस्ततः अलसौ सा तदा
पादौ धीरैनिरवाचि
मदालसा ॥१०३८ ॥
यदि मतवाले की तरह, अलसाये हुए दोनों पैरों को सब ओर रख जाय, तो घीर पुरुष उसे मदालसा चारी कहते हैं ।
१४. संचारिता
स्थापयेन्मत्तवद्यदि ।
प्राकुञ्चिताङ्घ्रिमुत्क्षिप्य सकृदन्येन
योजयेत् ।
तिर्यक् सञ्चारयेदन्यं तदा सञ्चारिता मता ॥ १०३६ ॥
श्राकुञ्च्य चरणावूर्ध्वं यत्रोत्क्षिप्य पुरः क्षिपेत् । ऐकैकं चेत् तदोक्ता सोत्कुञ्चितान्वर्थनामभाक् ॥१०४०॥
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जब कुछ मुड़े हुए एक पैर को ऊपर उठाकर बार-बार दूसरे पैर से मिला दिया जाय तथा दूसरे पैर को तिरछा चलाया जाय, तो उसे संचारिता चारी कहते हैं ।
१५. उत्कुंचिता
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यत्राकुञ्चितपादाभ्यां क्रमात् पार्श्वहतिर्भवेत् । प्राहापकुञ्चितामेनां वीरसिंहात्मजः सुधीः ॥ १०४१ ॥
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जब दोनों चरणों को थोड़ा मोड़कर तथा ऊपर उठाकर एक-एक को आगे फेंका जाय, तब उसे अर्थानुरूप नाम वाली उत्कुञ्चिता चारी कहते हैं ।
१६. अपकुंचिता
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जहाँ कुछ मुड़े हुए दोनों चरणों से क्रमशः पावों को पीटा जाय, वहाँ वीरसिंह के विद्वान् पुत्र अशोकमल्ल ने उसे अपकुञ्चिता चारी कहा है ।
१७. स्फुरिता
स्फुरिताग्रे मृतौ वेगाद् भूस्पृशोरङ्घ्रिपार्श्वयोः || १०४२ ॥ 1064
भूमि का स्पर्श करते हुए चरणों के पावों को वेग से आगे फैलाने पर स्फुरिता चारी बनती है ।
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