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चारी प्रकरण
यदि स्वस्तिक मुद्रा में अवस्थित जंघाओं को अलग-अलग करके एक वक्र कुञ्चित पैर के आगे फैलाकर फिर अपने पार्श्व में एड़ी से गिरा दिया जाय, तो उसे आविद्धा आकाशचारी कहते हैं। १५. नुपुरपादिका
अञ्चितं चरणं पश्चादापयित्वाऽस्य पाणिना। 1038 स्पृशेत् स्फिजं यदि ततस्तमेवाञ्चितजङ्घकम् ॥१०१७॥ यस्यां निपातयेदप्रतलेन वसुधातले । 1039
तामाचष्टाशोकमल्लस्तदा नूपुरपादिकाम् ॥१०१८॥ यदि एक अंचित चरण को पीछे उछालकर एड़ी से नितम्ब का स्पर्श किया जाय और उसी मुड़ी हुई जंघा वाले (अंचित) चरण को निचले अग्रभाग के बल पथ्वी पर गिरा दिया जाय, तो उसे अशोकमल्ल ने नपुरपादिका आकाशचारी कहा है। १६. आक्षिप्ता
त्रितालान्तरमुत्क्षिप्य पादमानीय कुञ्चितम् । 1040 पान्तिरं ततस्तं चेन्जङ्घास्वस्तिकयोगतः ।
यत्रोयं पातयेत्पार्ष्या साक्षिप्ताख्या मता तदा ॥१०१६॥ 1041 यदि एक कुंचित पैर को तीन तालों की दूरी तक ऊपर उछाल कर दूसरे पार्श्व में लाया जाय और फिर स्वस्तिकाकार जंघा के योग से उसे एड़ी के बल पृथ्वी पर गिरा दिया जाय, तो उससे आक्षिप्ता आकाशचारी बनती है। विनियोग .. नाव्य नृत्ये गतौ युद्धे नियुद्ध ऽपि प्रयोक्तृभिः ।
प्रयोक्तव्या इमाश्चार्यो ललिताङ्गक्रियायुताः ॥१०२०॥ 1042 अभिनेताओं को नाट्य, नृत्य, गमन, युद्ध तथा बाहुयुद्ध के अभिनय में भी, ललित आंगिक चेष्ठाओं से युक्त इन चारियों का प्रयोग करना चाहिए ।
क्वचिद ः प्रधानत्वं कचित्पाणेः कचिद् द्वयोः ।
- यथाप्रयोगशोभं हि परिज्ञयं मनीषिभिः ॥१०२१॥ 1043 बुद्धिमान् अभिनेताओं को प्रयोग-सौष्ठव के अनुसार कहीं पैर की, कहीं हाथ की और कहीं दोनों की प्रधानता से चारियों का विनियोग करना चाहिए ।
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