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विचित्राभिनय प्रकरण
नाटय तथा नृत्य में निपुण अभिनेता को चाहिए कि रंगमंच पर वह दक्षिण अलपद्म हस्त, बाम चतुर हस्त, परिमण्डल हस्त, मयूरललित हस्त, वीरा दृष्टि और उद्वाहित शिर से षड्ज स्वर (संगीत के सात स्वरों में प्रथम) का अभिनय प्रस्तुत करें।
हंसास्याभिधहस्तेन दक्षिणेनेतरेण तु । कटिस्थेनार्धचन्द्रेण समेन शिरसा तथा ।
685 ब्राह्माख्यस्थानकेनापि धीमानृषभमादिशेत् ॥६८६॥ बुद्धिमान अभिनेता को चाहिए कि दक्षिण हंसास्य हस्त, कटि पर अवस्थित बाम अर्धचन्द्र हस्त, सम शिर और ब्राह्म नामक स्थानक के द्वारा वह ऋषभ स्वर (संगीत के सात स्वरों में द्वितीय) का अभिनय प्रस्तुत करे। शुकतुण्डेन हस्तेन दृष्टया करुणया तथा ।
686 अधोमुखेन , शीर्षणाश्वक्रान्तस्थानकेन च ।
चार्याप्यश्चितया धीमान् गान्धारं स्वरमादिशेत् ॥६६०॥ 687 धीमान् अभिनेता को चाहिए कि शुकतुण्ड हस्त, करुणा दृष्टि, अधोमुख शिर, अश्वक्रान्त स्थानक और अंचिता चारी की रचना द्वारा वह गान्धार स्वर (संगीत के सात स्वरों में तृतीय) का अभिनय प्रस्तुत करे ।
पताको स्वस्तिकौ कृत्वा शिरसा विधुतेन च । शैवाख्यस्थानकेनापि कटीच्छिन्नेन वा पुनः ।
688 दृष्टया सहास्यया धीरोऽभिनयेन्मध्यगं स्वरम् ॥६६१॥ नाट्यनृतज्ञ अभिनेता को चाहिए कि दोनों पताक हस्तों को स्वस्तिकाकार करके; विधुत शिर, शैव स्थानक या कटिच्छिन्न स्थानक और हास्ययुक्त दृष्टि की रचना द्वारा वह मध्यम स्वर (संगीत के सात स्वरों में चतुर्थ) का अभिनय प्रस्तुत करे। कृत्वालपल्लवी हस्तौ धुतेन शिरसा तथा ।
689 बैष्णवस्थानकेनापि दृष्टया कान्ताख्यया तथा ।
एवं विनिर्दिशेद् धीमान् स्वरं पश्चमसंज्ञितम् ॥६६२॥ 690 बुद्धिमान् अभिनेता को चाहिए कि दोनों अलपल्लव हस्तों, घुत शिर, वैष्णव स्थानक और कान्ता दृष्टि की रचना करके वह पंचम स्वर का अभिनय प्रस्तुत करे ।
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