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विचित्राभिनय प्रकरण
तेन शब्दं यथौचित्यं हस्तकाद्यै
सुधीरेवमन्यं च विरुतादिकम् । रम्यैरभिनयेदिति ॥६२६॥
इसी प्रकार निपुण अभिनेता उक्त (वाम शुकतुण्ड तथा तिर्यक् स्थित दक्षिण सूचास्य) हस्त से शब्द का और अन्य हस्तमुद्रा से गुंजन का भाव प्रकट करें। उन्हें चाहिए कि अन्यान्य के भावों के प्रदर्शन के लिए वे यथोचित रीति से रमणीय हस्तमुद्राओं का प्रयोग करें ।
प्रसारितभुजो मुष्टिर्वामोऽन्यः खटकामुखः । कर्णस्थो धनुराकर्षे नियुक्तो नृत्यपण्डितः ॥७००॥
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नृत्यवेत्ता लोगों को फैली हुई भुजा वाले वाम मुष्टि हस्त तथा कान पर स्थित दक्षिण खटकामुख हस्त को धनुष खींचने के अभिनय में प्रयुक्त करना चाहिए ।
खटकास्यकरस्थाने करः सूचीमुखो यदा ।
श्रव्यं श्रवणयोगेन मुखयोगेन वाचिकम् । स्पृश्यमङ्गादियोगेन चक्षुर्योगेन चाक्षुषम् ॥७०२ ॥ गन्धं घ्राणस्य योगेन स्वादं जिह्वाभियोगतः । ..एवं योग्येन हस्तेनाभिनयेन्नृत्यकोविदः ||७०३ ||
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तदासौ बाणसन्धाने विद्वद्भिः परिकीर्तितः ॥७०१ ॥
जब उक्त मुद्रा में खटकास्य हस्त के स्थान पर सूचीमुख हस्त को प्रयुक्त किया जाता है, तब विद्वानों ने वाणसन्धान के अभिनय में उसका विनियोग बताया है ।
मयैवमेते सम्प्रोक्ता भावा अभिनयं प्रति ।
सम्प्रोक्ता ये न ते ज्ञेयाः प्रायशो लोकतो बुधैः ॥७०४ ॥
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इस प्रकार नृत्यनिपुण अभिनेता को चाहिए कि वह कान के योग से सुनने योग्य विषय का, मुख के योग से वाचिक विषय का अंग आदि के योग से स्पर्श करने योग्य विषय का, नेत्र के योग से चाक्षुष विषय का, नाक के योग से गन्ध विषय का और जिह्वा के योग से स्वाद विषय का अभिनय करे ।
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इस प्रकार मैंने विभिन्न अभिनयों से सम्बद्ध भावों का निरूपण कर दिया है; किन्तु जिनके सम्बन्ध में नहीं कहा गया है, विज्ञ अभिनेताओं को चाहिए उन्हें लोक व्यवहार द्वारा अवगत या ग्रहण करें ।
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