________________
नस्याध्यायः
यदि उक्त स्वस्तिक हस्तों को चारों ओर घेरते तथा घुमाते हुए अलग-अलग करके अपने-अपने पार्श्व में अवस्थित कर दिया जाय तो उसे विप्रकीर्णवर्तना कहते हैं ।
५. पुष्पपुटवर्तना
परिवृत्त्या पुष्पपुटः करः पार्वे व्रजेद् यदि । 146 ततो वक्षःस्थलं प्राप्तो व्यावृत्त्या नेत्रसुन्दरः ।
तदा धोरैः पुष्पपुटवर्तना समुदाहृता ॥७४८॥ 747 यदि पुष्पपुट हस्त को घुमाते हुए पार्श्व में ले जाया जाय और फिर, नेत्रों को अच्छा लगने वाले, उस हस्त को वहाँ से वक्षःस्थल पर पहुंचा दिया जाय तो धीर पुरुषों ने उसे पुष्पपुटवर्तना कहा है।
६. त्रिपताकवर्तना
सव्यापसव्यतो भ्रान्तौ त्रिपताको मुहः करौ ।
मणिबन्धावधि प्रोक्ता त्रिपताकाख्यवर्तना ॥७४६॥ 748 यदि दोनों त्रिपताक हस्तों को बार-बार बाँये-दाँये क्रम से कलाई तक घुमाया जाय तो उसे निपताकवर्तना कहते हैं। ७. कर्तरीमुखवर्तना
त्रिपताकोक्तरीत्यैव कर्तरीमुखवर्तना ॥७५०॥ यदि दोनों कर्तरीमुख हस्तों को उक्त त्रिपताक हस्तों की तरह प्रस्तुत किया जाय तो उसे कर्तरीमुखवर्तना कहते हैं। ८. मुष्टिवर्तना
व्यावृत्तिक्रियया मुष्टि कृत्वा चेद् भ्रामयेन्मुहुः। 749
सव्यापसव्यतो मुष्टिवर्तना सद्भिरीरिता ॥७५१॥ यदि मुष्टि हस्त को व्यावृत्ति (चक्कर काटने की) क्रिया द्वारा बाँये-दाँये क्रम से बार-बार घुमाया जाय तो उसे सज्जनों ने मुष्टिवर्तना कहा है ।