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चालन प्रकरण
जहाँ दोनों हाथ बारी-बारी से कलाई से कुहनी तक के भाग को छोड़कर कन्धों पर पहुँच कर लोटने लगें और फिर चक्राकार धारण कर नीचे चले जायें, तो उसको बालव्यंजन चालन कहते हैं। २३. विरुडिबन्धन
अनुसृत्य त्रिकोणत्वं करो यत्र विलोड्यते । पुरतः पार्श्वयोस्तद्वद् यदा मण्डलवृत्तितः । 807
चालकज्ञास्तदा प्राहुरिदं विरुडिबन्धनम् ॥८०२॥ जब हाथ त्रिकोण बनाकर हिलाया जाता है और उसी तरह मण्डलाकार में आगे तथा दोनों पावों में चलाया जाता है, तब चालन के विशेषज्ञ लोग उसे विरुडिबन्धन चालन कहते हैं । २४. विश्रृंगाटकबन्ध
प्रतिलोमानुलोमाम्यां भवेदेतस्य या क्रिया । 808
विशृङ्गाटकबन्धाख्यं तद्विदस्तदवादिषुः ॥८०३॥ इसी विरुडिबन्धन नामक चालन क्रिया को यदि अनुलोम-विलोम-भाव से सम्पन्न किया जाय, तो चालनज्ञों ने उसे विशृंगाटकबन्ध चालन कहा है। २५. कुण्डलिचारक विलोज्यते यत्र करो वामदक्षिणयोर्यदि ।
809 गतागते । दधद् दिक्षु तिर्यग्व्यावर्तिता पुनः ।
सद्भिरेतत् समादिष्टं तदा कुण्डलिचारकम् ॥८०४॥ 810 यदि बायें-दायें क्रम से हाथ को चलाया जाय और दिशाओं में यातायात करते हुए उस हाथ को तिरछा घुमाया जाय तो सज्जन लोग उसे कुण्डलिचारक चालन कहते हैं । २६. धनुराकर्षण
स्वस्तिकीकृतयोः पाण्योर्वेगात् तिर्यक् प्रसर्पतोः । पार्श्वेऽर्थककरोऽकस्मानिवृत्य यदि कर्णगः ।
811 धनुराकर्षणं प्रोक्तं तदा त्वन्वर्थनामकम् ॥८०५॥ स्वस्तिक मुद्रा में अवस्थित दोनों हाथों को पार्श्व में तिरछा करके चालाया जाय और फिर एक हाथ को अकस्मात् लोटाकर कान पर ले जाया जाय, तो उसे अर्थानुरूप नाम वाला धनुराकर्षण चालन कहते हैं।
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