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स्थानकों का निरूपण स्थानक (खड़े होने का ढंग)
रङ्ग प्रविश्य यैः स्थित्वा चार्यादी रचयेत्क्रियाः ।
नर्तको यत्नतस्तावत्स्थानान्येतान्यहं ब्रुवे ॥८६३॥ . 876 नर्तक या अभिनेता रंगमंच पर प्रवेश कर जिनके द्वारा चारी (पाद-चेष्ठा-विशेष) आदि क्रियाओं को सम्पन्न करे उन स्थानों का निरूपण किया जा हा है।
भावार्थे तिष्ठतेर्धातोरायाते प्रत्यये ल्युटि । स्थाने सिद्ध ततः पश्चात् स्वार्थे कप्रत्यये सति । 877
स्थानकं साधितं तस्य लक्षणं प्रतिपादये ॥८६४॥ स्था धातु से भाव अर्थ में ल्युट् प्रत्यय होने पर स्थान शब्द निष्पन्न होता है। फिर उससे स्वार्थ में क प्रत्यय होने पर स्थानक शब्द की सिद्धि होती है । अब उसका (स्थानक का) निरूपण किया जाता है।
निश्चलात्माङ्गविन्यासविशेषात् स्थानकं मतम् ॥८६॥ 878 अंगों को निश्चल करके अवस्थित होने की क्रियाविशेष से स्थानक की रचना होती है। पुरुष स्थानक के भेद
वैष्णवं समपादं च तथा वैशाखमण्डले ।
प्रालीढं च तथा प्रत्यालीढं स्थानानि पुंसि षट् ॥८६६॥ 879 पुरुष के छह स्थानक होते हैं : १. वैष्णव, २. समपाइ, ३. वैशाख, ४. मण्डल, ५. आलोढ़ और ६. प्रत्यालीढ़। स्त्रियों के स्थानक के भेद
प्रायताख्यावहित्थाख्ये तथाश्वक्रान्तसंज्ञकम् ।
स्त्रीणां त्रीणि स्युरेतानि स्थानानीति मुनेर्मतम् ॥८६७॥ 880 भरत मुनि के मत से स्त्रियों के तीन स्थानक होते हैं : १. आयत, २. अवहित्य और ३, अश्वकान्त। .