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नृत्याध्यायः
प्रतिषेधे तथा स्त्रीणामीष्विङ्गुलिमोटने ॥६०४॥ 919 मौनविसर्जनगर्वगाम्भीर्यावाहनेष्वपि ।
एतच्चिकोर्षितासु स्याद् गतिष्वपि कृतास्वपि ॥६०५॥ 920 पुष्पांजलि समर्पित करने में, रंगभूमि पर उतरने के आरम्भ में, सखी तथा प्रियतम आदि से वार्तालाप करने, अभिलाष, रोष, मान करने, निषेध, स्त्रियों की ईर्ष्या, उँगली चटकाने, मौन, विसर्जन, गर्व, गंभीरता, आवाहन करने के लिए इच्छित और सम्पन्न की हुई गतियों के अभिनय में उसका विनियोग होता है।
रङ्गावतरणारम्भे पुष्पाञ्जिलिविसर्जने । . स्त्रीभिरेवेति तद् योज्यं पूर्वरङ्गेऽवदन्परे ॥६०६॥ 921 नरः स्त्रियोऽथवा कुर्युरिदमेव प्रवेशने ।
यथाभिनेयं स्थानं हि प्रविष्टेष्विति केचन ॥६०७॥ 922 रंगभूमि पर उतरने के आरम्भ में, पुष्पांजलि समर्पित करने में और विघ्न-शान्ति के लिए अभिनय के आरम्भ में किये जाने वाले कृत्य नान्दी पाठ आदि में स्त्रियों को ही उसका विनियोग करना चाहिए। किन्तु अन्य आचार्यों का कहना है कि स्त्री या पुरुष, कोई भी उसका विनियोग कर सकता है। प्रवेश करने तथा प्रविष्ट होने के अभिनय में भी कुछ आचार्य उसका विनियोग बताते हैं ।
आयतानन्तरं योज्या रगावतरणादयः । यथोचितं तदा ज्ञेयाः प्रचारा हस्तपादजाः ।
923 भट्टाभिनवगुप्तस्य मयैतन्मतमोरितम् ॥६०८॥ आयत स्थानक के अनन्तर रंगभूमि पर उतरने आदि की योजना करनी चाहिए। उस समय हाथ-पैर की संचालनक्रिया को भली भांति समझ लेना चाहिए। यह निरूपण भट्ट अभिनव गुप्त (अभिनवभारती टीका के रचयिता) के मत से किया गया है।
२. अवहित्य और उसका विनियोग
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एतदेवावहित्थाख्य स्थानमयोविपर्ययात् । केचिद्विपश्चितोऽत्राहुव्यत्यासं कटिहस्तयोः ॥६०६॥