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नत्याध्यायः
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जब एक हाथ कान के पास रहे और दूसरे हाथ को हटाकर चारों ओर से घेर दिया जाय तब उसे वर्तनाभरण चालन कहते हैं। १४. मिथोंसवीक्षाबाह्य
एकः करश्चदन्यस्य स्कन्धदेशमृजुर्गतः । 786 निवृत्तः सन् निजे पार्वे क्रमाद् विहितमण्डलः ।
मिथोंसवीक्षाबाह्यं तत्कथ्यते चालनं तदा ॥७८५॥ 787 यदि एक हाथ दूसरे के कन्धे पर सीधे चला जाय और फिर क्रमश: मण्डल बना कर पार्श्व में लौट आये, तो उसे मिथोंसवीक्षाबाह्य कहते हैं। १५. मौलिरेचितक
कटिदेशगतस्त्वेकोऽपरस्तु पुरतो गतः । प्रथतो केशपर्यन्तं लीलया लुठितौ यदि ।
तदात्र सद्धिराख्यातं मौलिरेचितकं तदा ॥७८६॥ यदि एक हाथ को कमर पर और दूसरे को सामने रखा जाय तथा दोनों को केश पर्यन्त लीलापूर्वक लोटाया जाय तो सज्जन लोग उसे मौलिरेचितक चालन कहते हैं। १६. मणिबन्धासिकर्ष
हस्तावुद्यम्य युगपत् क्रमाद् वा स्कन्धधोर्यदि । 789 विलोडनं विधायाथ कूपरस्वस्तिकात्मना ॥७८७॥ तत्रैव लोडयित्वाथ बहिरन्तश्च मुष्टितः । 790 द्रुतं निविश्य लुठनाच्चक्राकृतिविडम्बिनः ॥७८८॥ तदन्यस्मिन् क्रमाद्धस्ते पार्श्वयोर्वलनं गते । 791 परस्य लीलया यत्र समुत्क्षेपो विधीयते ।
मणिबन्धासिकर्षाख्यं तदा सद्धिनिरूपितम् ॥७८६॥ 792 दोनों हाथों को एक साथ या क्रम से उठाकर दोनों कन्धों पर हिलाया जाय; फिर कुहनियों को स्वस्तिकाकार बनाकर हाथों को वहीं पर हिलाया जाय, अनन्तर बाहर और भीतर शीघ्र मुष्टि हस्त का प्रयोग करके चक्राकार हाथ को लोटाया जाय; पश्चात् एक हाथ को दोनों पार्यों में टेढ़ा करके दूसरे हाथ को लीलापूर्वक ऊपर उठाया जाय; ऐसा करने पर सज्जनों ने उसे मणिबन्धासिकर्ष चालन कहा है।
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