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विचित्राभिनय प्रकरण
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उद्वेगसम्म्रमः शस्त्रसम्पातेनापि साध्वसम् ।
पुंसामभिनयेद् धीमान् धैर्योद्वेगादिभिस्तथा ॥६६३॥ 660 उद्वेगजन्य हड़बड़ी, शस्त्रपात, धैर्य और उद्वेग आदि से बुद्धिमान् पुरुष को पुरुषों का भय प्रदर्शित करना चाहिए।
लोलतारकनेत्राभ्यामङ्गस्फुरितकम्पितः पार्वावलोकनश्चित्रशब्दादाक्रन्दितेन च ।
प्रालिङ्गानेन पुंसोऽपि स्त्रिया भीति प्रदर्शयेत् ॥६६४॥ आँखों के तारे चलाने, अंग-स्फुरण, शरीर को कम्पाने, बगल की ओर देखने, हाय-हाय करके चिल्लाने और आलिंगन के द्वारा पुरुषों को स्त्रियों का भय प्रदर्शित करना चाहिए।
पुंस्कृतः स्त्रीकृतो भावो द्विधेत्यभिनयं प्रति ।
तत्राद्यो धैर्यमाधुर्यसपन्नौ ललितोऽपरः ॥६६॥ अभिनय-योजना में पुरुष तथा स्त्री द्वारा प्रकट किया जाने वाला भाव दो प्रकार का होता है। पुरुषों के अभिनय में धैर्य तथा माधुर्य से संयुक्त भावों और स्त्रियों के अभिनय में लालित्यपूर्ण भावों का प्रदर्शन करना चाहिए।
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शब्द
कम्पनेन शरीरस्य घूर्णनान्नेत्रयोरपि ।
663 प्राकाशवीक्षणात पादस्खलितःकोमलस्तथा ।
विलोमवचनर्धीमान नादं स्त्रीणां विनिर्दिशेत ॥६६६॥ 664 शरीर के कम्पन, नेत्रों के घूमने, आकाश की ओर ताकने, पैरों के लड़खड़ाने और कोमल तथा विपरीत वचनों द्वारा धीमान् पुरुष स्त्रियों के शब्द का अभिनय करे ।
उक्ता येऽभिनयास्तेऽमी प्रायः स्त्रीनीचसंश्रयाः ॥६६७॥ ऊपर जो अभिनय बताये गये हैं, वे प्रायः स्त्रियों और निकृष्ट पुरुषों के लिए हैं।
पक्षियों का अभिनय (५) सारसान् केकिहंसौ च स्थूलानन्यांश्च पक्षिणः । रेचकरङ्गहारैश्च निदिशेन्नाटयकोविदः ॥६६८॥