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नत्याध्यायः
ग्रीवा के नौ भेद कहे गये हैं, जिनके नाम हैं : १. समा, २. नता, ३. उन्नता, ४. व्यसा, ५. वलिता, ६. कुञ्चिता, ७. अञ्चिता, ८. निवृत्ता और ९. रेचिता। १. समा और उसका विनियोग
स्वाभाविको समोक्ता सा जपे ध्यानस्वभावयोः ॥३६१॥ 369 स्वाभाविक रूप में समस्थिति में अवस्थित ग्रीवा समा कहलाती है। जप, ध्यान और स्वभाव का भाव प्रदर्शित करने में उसका विनियोग होता है। २. नता और उसका विनियोग
नम्रा ग्रीवा नता प्रोक्ता धीरः कण्ठावलम्बने ।
हारादिबन्धने चैषा कामिनीभिनियुज्यते ॥३६२॥ 370 नीचे की ओर झुकी हुई ग्रीवा को नता कहते हैं। धीर पुरुषों के मत से गले का सहारा लेने या गले लगाने और रमणियों द्वारा हार आदि धारण करने के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ३. उन्नता और उसका विनियोग
ऊर्ध्वगा तून्नता ग्रीवा भवेदूर्वावलोकने ।
नियोज्या सा बुधस्तद्वत्कण्ठालंकारदर्शने ॥३६३॥ 371 ऊपर की ओर उठी हई ग्रीवा को उन्नता कहा जाता है। ऊपर ताकने और गले का आभूषण देखने के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ४. श्यला और उसका विनियोग
पार्श्वनम्रा भवेत् व्यत्रा खेदे पाचवलोकने ॥३६४॥ बगल की ओर झुकी हुई ग्रीवा त्र्यसा कहलाती है । खेद तथा अगल-बगल ताकने के अभिनय मे उसका विनियोग होता है। ५. वलिता और उसका विनियोग
ग्रीवा पार्शोन्मुखी या तु सा सद्भिर्वलिता मता । 372
ग्रीवाभङ्ग तथा भर्तुः प्रेक्षायां गुरुसन्निधौ ॥३६५॥ जो ग्रीवा पार्श्व की ओर उन्मुख हो, उसे विद्वानों ने वलिता कहा है । गर्दन के टूटने, स्वामी को देखने और गुरु के समीप (बैठने) के अभिनय में उसका विनियोग होता है।
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