________________
अंग प्रत्यंग प्रकरण
धीर पुरुषों ने मणिबन्ध के पांच भेद बताये हैं : १. निकुञ्च, २. आकुञ्चित, ३. चल, ४. नामित और ५. सम । १. निकुञ्च और उसका विनियोग
बहिर्यो निम्नतां प्राप्तो निकुञ्चोऽसौ मतः सताम् । 419 .
दाने त्वभयदानेऽपि मुनिना संप्रदर्शितः ॥४१८॥ जो कलाई बाहर की ओर झुकी हो उसे सज्जनों ने निकुञ्च कहा है । भरत मुनि ने दान तथा अभयदान के अभिनय में उसका विनियोग बताया है। . २. आकुञ्चित और उसका विनियोग
अन्तर्निम्नः समाख्यातो धीरैराकुञ्चिताभिधः ।
प्रायः प्रयुज्यते धीररेष वस्त्वपसारणे ॥४१६॥ भीतर की ओर झुके हुए मणिबन्ध को धीर पुरुषों ने आकुञ्चित कहा है। धीरों के मत से वस्तु के हटाने के अभिनय में उसका विनियोग होता है । ३. चल और उसका विनियोग
अभ्यासाद रचितौ चेत् स्तो निकुञ्चाकुञ्चिताविमौ ।
चलस्तदा नियोगोऽस्यावाहने सद्भिरीरितः॥४२०॥ यदि दोनों मणिबन्धों की निकुञ्च और आकुञ्चित में रचना की जाय तो, वह चल कहलाता है। सज्जनों ने आह्वान करने के अभिनय में उसका विनियोग बताया है। ४. ममित और उसका विनियोग
. भ्रमणाद् भ्रमितः खगच्छुरिकाभ्रमणादिषु ॥४२१॥ 422 यदि मणिबन्ध को घुमाया जाय तो वह भ्रमित कहलाता है । तलवार और छुरे आदि के घुमाने में उसका विनियोग होता है। ५. सम और उसका विनियोग
ऋजुः समे धारणे तु पुस्तकस्य प्रतिग्रहे ॥४२२॥ यदि मणिबन्ध को (स्वाभाविक रूप में) सीधा रखा जाय तो वह सम कहलाता है। पुस्तक के धारण करने तथा दान लेने के अभिनय में उसका विनियोग होता है।