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४. विकूणिता और उसका विनियोग
नासा संकुचिता या स्यात् सोक्ता धीरैर्विकूणिता ।
श्रातौं हास्ये जुगुप्सायामसूयायामपि सा स्मृता ॥ ५१३॥
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जिस नासिका के नथुने सिकोड़ लिये जायँ उसे विकूणिता कहते हैं। विद्वानों ने पीड़ा, हास्य, जुगुप्सा और असूया के भावों में उसका विनियोग बताया है ।
५. नता और उसका विनियोग
नृत्याध्यायः
मुहुर्लग्नपुटा या तु सा नता सद्भिरीरिता ।
विच्छिन्नमन्दरुदिते सोच्छ्वासे सा निरूपिता ।। ५१४ ॥ 519
यदि नथुनों को बार-बार सटाया या हिलाया जाय तो, विद्वानों ने उस नासिका को नता कहा है। सिसकने और साँस को ऊपर खींचने में उसका विनियोग होता है ।
६. मन्दा और उसका विनियोग
ईषच्छ्वासोच्छ्वासयुक्ता नासा मन्दोदिता बुधैः । चिन्तानिर्वेदयोः शोके तथौत्सुक्ये नियुज्यते ॥ ५१५॥
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मन्द श्वास एवं उच्छ्वास से युक्त नासिका को विद्वानों ने मन्दा कहा है । चिन्ता, निर्वेद (वैराग्य), शोक और उत्सुकता का भाव प्रदर्शित करने में उसका विनियोग होता है ।
उन्नीस प्रकार का वायु अभिनय
वायु के भेद (ऊर्ध्वश्वास अधः श्वास)
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स्वस्थौ चलौ विमुक्तश्च प्रवृद्धोल्लासितौ तथा । निरस्तस्खलितौ श्वासः प्रसृतो नवधोच्छ्वासनिःश्वासावेवं
आचार्य कोहल के मत से उच्छ्वास ( साँस खींचने ) और निःश्वास ( साँस छोड़ने) के नौ भेद होते हैं । १. स्वस्थ २. चल, ३. विमुक्त, ४. प्रबुद्ध, ५. उल्लासित, ६. निरस्त, ७. स्खलित, ८. प्रसूत और ९. विस्मित । समो भ्रान्तः कम्पितश्च विलीनान्दोलितौ नतः ॥ ५१७॥ स्तम्भितश्च तथोच्छ्वासनिःश्वासौ सूत्कृतं तथा । सीत्कृतं चेति स प्रोक्तो दशधा लक्ष्मवेदिभिः ॥ ५१८ ॥
विस्मितस्तथा ॥ ५१६ ॥ 521 tataat |
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