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उपांग प्रकरण
जिसके दोनों ओष्ठपुट उन्नत हों (अर्थात् जो ओष्ठ अपनी स्वाभाविक स्थिति में हों ) वह अघर समुद्गक कहलाता है । चुम्बन आदि, कृपा, फूकने और अभिनन्दन करने के अभिनय में उसका विनियोग होता है । ७. उवृत्त और उसका विनियोग
उद्वृत्तो वदनोत्क्षेपात् सोऽवज्ञापरिहासयोः ॥ ५४१॥
जिस अघर को मुँह की ओर उठाया गया हो, वह उद्वृत्त कहलाता है । अनादर और परिहास के अभिनय में में उसका विनियोग होता है ।
८. विकासी और उसका विनियोग
किञ्चिल्लक्ष्योर्ध्वदन्तो यः स विकासी स्मिते मतः ॥ ५४२ ॥
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जिस अघर के ऊपर दाँत कुछ दिखायी पड़ें, वह विकासी कहलाता है । ईषत् हास्य ( मुसकुराहट) के अभिनय
में उसका विनियोग होता है ।
९. रेचित और उसका विनियोग
रेचितोन्वर्थलक्ष्मा स्याद् विलासे स नियुज्यते ॥५४३॥
साफ किया गया अधर रचित कहलाता है । विलास के अभिनय में उसका विनियोग होता है । १०. आयत और उसका विनियोग
ततः सहोत्तरोष्ठेनायतः स्यात् सोऽद्भुते रसे ॥५४४॥
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ऊपर के ओठ के साथ फैला हुआ अघर आयत कहलाता है । अद्भुत रस के अभिनय में उसका विनियोग होता है ।
छह प्रकार का जिह्वा अभिनय
जिवा के भेद,
ऋज्वी लोला लेहिनी च वक्रा सुक्कानुगोन्नता ।
षोढेति रसनां प्राहाऽशोकमल्लो नृपाग्रणीः ॥ ५४५॥
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महाराज अशोकमल्ल ने जिह्वा के छह भेद बताये हैं, जिनके नाम हैं : १. ऋज्वी, २. लोला, ३. लेहनी, ४. वत्रा, ५. सुक्कानुगा और ६. उन्नता ।
१. ऋज्वी और उसका विनियोग
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ऋज्वी, सा व्यात्तवक्त्रे या रसना स्यात् प्रसारिता । एषा श्रमे श्वापदानां पिपासायामपि स्मृता ॥ ५४६ ॥
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