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उपांग प्रकरण
जो कपोल उन्नत हों, उन्हें धीर पुरुषों ने पूर्ण कहा है।
समौ सहजभावेषु क्षामौ दुःखे निरूपितौं । 562 कम्पितौ रोमहर्षेषु फुल्लौ प्रीतौ बुधैर्मतौ ॥५६३॥ कुञ्चितौ साध्वसे स्पर्श शीते रोमाञ्चितेऽपि च । 563
पूर्णावशोकमल्लेन प्रोक्तावुत्साहगर्वयोः ॥५६४॥ विद्वानों का कहना है कि स्वाभाविक भावों के अभिनय में सम कपोलों का, दःख के अभिनय में क्षाम कपोलों का, रोमांच के अभिनय में कम्पित कपोलों का, प्रीति के अभिनय में फल्ल कपोलों का और भय, स्पर्श, शीत तथा रोमांच के अभिनय में कुञ्चित कपोलों का विनियोग होता है। अशोकमल्ल का कहना है कि उत्साह तथा गर्व के अभिनय में पूर्ण कपोलों का प्रदर्शन करना चाहिए।
आठ प्रकार के चिबुक का अभिनय चिबुक (ठोढ़ी) के भेद चिबुकं लक्षितप्रायं यद्यप्योष्ठादिकर्मणा ।
564 तथाप्यहं सुबोधाय तल्लक्ष्म व्याहरेऽधुना ॥५६५॥ यद्यपि ओष्ठ आदि के लक्षण-विनियोग से चिबुक के अभिनय का भी बोध हो जाता है ; फिर भी (उनकी) सहज जानकारी (स्पष्टीकरण) के लिए यहाँ (पृथक् रूप से) उनका निरूपण किया जा रहा है । व्यादी] चलितं लोलं श्वसितं चलसंहतम् ।
565 संहतं स्फुरितं वकं चैवं चिबुकमष्टधा ॥ चिबुक के आठ भेदों के नाम इस प्रकार है : १. व्यादीर्ण, २. चलित, ३. लोल, ४. श्वसित, ५. चलसंहत, ६. संहत, ७. स्फुरित और ८. वक्र ।। १. व्यावीर्ण और उसका विनियोग
चिबुकं दूरनिष्क्रान्तं व्यादीणं जृम्भणादिषु ॥५६६॥ 566 दूर तक बाहर निकला हुआ चिबुक व्यादीर्ण कहलाता है। जम्हाई लेने के अभिनय में उसका विनियोग होता है। २. चलित और उसका विनियोग
चलितं श्लेषविश्लेषे क्षोभवाक्स्तम्भयो रुषि ॥५६७॥
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