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नृत्याध्यायः
चिबुक को संयुक्त-वियुक्त करना चलित कहलाता है। क्षोभ, वाणी के स्तम्भन और क्रोध के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ३. लोलित और उसका विनियोग
तिर्यग्गतागते विभ्रल्लोलं चर्वितचर्वणे ॥५६८॥ 567 तिरछे गमनागमन को धारण करने वाला चिबुक लोल कहलाता है। चबाये हुए को चबाने के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ४. श्वसित और उसका विनियोग
एकाङगुलादधःपाति श्वसितं प्रेक्षितेऽद्भुते ॥५६॥ एक अँगुल नीचे गिरने वाला चिबुक श्वसित कहलाता है। आश्चर्यजनक वस्तु के देखने के भाव-प्रदर्शन में उसका विनियोग होता है। ५. चलसंहत और उसका विनियोग
चलसंहतमन्वर्थ कामिनीचुम्बने मतम् ॥५७०॥ 568 अपने अर्थ के अनुरूप (अर्थात् चंचल और संयुक्त) चिबुक चलसंहत कहलाता है। कामिनियों के चुम्बन के भाव-प्रदर्शन में उसका विनियोग होता है। ६. संहत और उसका विनियोग
निश्चलं मोलितास्यं यत् तन्मौने संहतं मतम् ॥५७१॥ जो चिबुक निश्चल तथा संकुचित मुख वाला हो, उसे संहत कहा जाता है । मौन के भावाभिव्यंजन में उसका विनियोग होता है। ७. स्फुरित और उसका विनियोग
स्फुरितं कम्पनादुक्तं शीते शीतज्वरेऽपि च ॥५७२॥ 569 जो चिबक कांपता हो उसे स्फरित कहते हैं । शीत तथा शीतज्वर के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ८. वक्र और उसका विनियोग
तिर्यग्गतं यत् तद् वक्र ग्रहावेशादिषु स्मृतम् ॥५७३॥ जो चिबुक तिरछा चलाया जाय, वह वक्र कहलाता है। ग्रहों के आवेश आदि के अभिनय में उसका विनियोग होता है।
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