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नृत्याध्यायः
१. वित्तित और उसका विनियोग तितक्संकुचितो यः स्यादधरः स विवर्तितः ।
540 असूयावज्ञयोर्हास्यवेदनादिषु कीर्तितः ॥५३५॥ जो अधर (घृणा से) तिरछा होकर सिकुड़ जाय वह विवर्तित कहलाता है । असूया, अवज्ञा (अनादर), हास्य और वेदना आदि के अभिनय में उसका विनियोग होता है । २. विसष्ट और उसका विनियोग
विनिष्क्रान्तो विसृष्टः स्याद् द्रव्येणालक्त कादिना ।
रञ्जने सविलासेऽपि बिब्बोकेऽपि च सुभ्र वाम् ॥५३६॥ 541 जो अधर आगे निकला हो वह विसृष्ट कहलाता है। सुन्दरियों द्वारा विलासपूर्वक महावर आदि से अधरों को रंगने और रूपादि के गर्व से प्रिय की उपेक्षा करने के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ३. कम्पित और उसका विनियोग
अन्वर्थः कम्पितः शीतरुड्भीपीडाजपादिषु ॥५३७॥ कॉपता हुआ अधर कम्पित कहलाता है । शीत, रोग, पीड़ा, और जप आदि के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ४. विनिगहित और उसका विनियोग वदनान्तःप्रवेशेनायासे स्याद् विनिगूहितः ।
542 स ईर्ष्यारोषयोः स्त्रीणां हठाच्चुम्बति च प्रिये ॥५३८॥ जिस अधर को मुख के भीतर छिपा लेने से कष्ट (आयास) हुआ हो (अर्थात् जिस अधर को आयासपूर्वक मुख के भीतर छिपा लिया जाय), वह विनिगहित कहलाता है। स्त्रियों की ईर्ष्या तथा कोप और उनका वलात चम्बन लेते हुए प्रिय के अभिनय में उसका विनियोग होता है । ५. सन्दष्टक और उसका विनियोग
योऽधरो दशनैर्दष्टः क्रोधे सन्दष्टकस्तु सः ॥५३॥ 543 जिस अधर को दाँतों से काटा (या चबाया) जाय, वह सन्दष्टक कहलाता है। क्रोध के भाव-प्रदर्शन में उसका विनियोग होता है। ६. समुद्गक और उसका विनियोग
यो दधात्युन्नतावोष्ठसम्पुटौं स समुद्गकः । चुम्बनेष्वनुकम्पायां फूत्कारेऽप्यभिनन्दने ॥५४०॥ 544
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