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उपांगाभिनय और उनका विनियोग
छह प्रकार का नासाभिनय अशोकमल्ल ने नासाभिनय के छह भेदों का उल्लेख किया है। उनके नाम हैं : १. स्वाभाविकी, २. विकृष्टा, ३. सोच्छ्वासा, ४. विकूणिता, ५. नता और ६. मन्दा । १. स्वाभाविकी और उसका विनियोग
स्वाभाविकी स्वभावस्था स्वाभावाभिनये मता ॥५१०॥ स्वाभाविक रूप में अवस्थित नासिका को स्वाभाविको कहते हैं। स्वभाव के अभिनय में उसका विनियोग होता है। २. विकृष्टा और उसका विनियोग
___ अत्युत्फुल्लपुटा नासा विकृष्टा भीतिरोषयोः ।
प्रातौं तथोर्ध्वश्वासे च तीव्रगन्धेऽप्युदाहृता ॥५११॥ यदि नासिका के नथुनों को अत्यधिक रूप से फुला दिया जाय, तो उसे विकृष्टा कहते हैं । भय, रोष, पीड़ा, ऊर्ध्वश्वास और तीव्र गन्ध के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ३. सोच्छ्वासा और उसका विनियोग योत्कृष्टमारुता नासा सा सोच्छवासोदिता बुधः ।
516 उच्छ्वासे सौरभेऽप्येषा दीर्घोच्छ्वासविधायिषु ।
निर्वेदादिष्विपि च या भावेषु विनियुज्यते ॥५१२॥ 517 विद्वानों का कहना है कि यथेष्ट वायु से भरी (अर्थात् तेजी से ऊपर सांस खिंचती) हुई नासिका सोच्छ्वासा कहलाती है । साँस को ऊपर खींचने, सुगन्ध ग्रहण करने, उच्छ्वास लेने और वैराग्य या दुःख आदि के भावों को अभिव्यंजित करने में उसका विनियोग होता है।
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