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उपांग प्रकरण
शास्त्रकारों ने वाय के दस भेदों का उल्लेख किया है, जिनके नाम हैं : १. सम २.मान्त, ३. कम्पित, ४. बिलीन, ५. आन्दोलित, ६. स्तम्भित, ७. उच्छ्वास, ८. निःश्वास, ९. सूत्कृत और १०. सीत्कृत । १. स्वस्थ और उसका विनियोग
स्वभावजौ यावुच्छ्वासनिःश्वासाख्यौ तु मारुतौ ।
तौ स्वस्थौ स्वस्वकार्येषु विनियुक्तौ नियोक्तभिः ॥५१॥ 524 उच्छ्वास और निःश्वास नामक स्वाभाविक रूप से गृहीत एवं निःसृत वायु स्वस्थ कहलाता है । नृत्ताचार्यों ने सामान्यतः सभी अभिनयों के भावों में उसका विनियोग बताया है। २. चल और उसका विनियोग
उष्णावुच्छ्वासनिःश्वासौ सशब्दौ वक्त्रनिर्गतौ ।
यौ तौ चलो शोकचिन्तासमौत्सुक्येषु कीर्तितौ ॥५२०॥ 525 जो उच्छ्वास तथा निःश्वास गर्म, शब्दयुक्त तथा मुख से निकले वे चल कहलाते हैं । शोक, चिन्ता तथा तत्सम ... उत्सुकता के अभिनय में उसका विनियोग होता है । ३. विमुक्त और उसका विनियोग
चिरं निरुध्य यो मुक्तो विमुक्तः सोऽनिलो मतः ।
ध्याने योगे सद्भिरेष प्राणायामे च युज्यते ॥५२१॥ 526 जिस वायु को चिरकाल तक रोक कर छोड़ दिया जाय उसे विमुक्त कहा जाता है । सज्जनों ने ध्यान, योग तथा प्राणायाम के अभिनय में उसका विनियोग बताया है। ४. प्रबुद्ध और उसका नियोग
यो निःश्वासः प्रवृद्धः सन् सशब्दः स्याद् विनिर्गतः ।
प्रवृद्ध नामासौ वायुः क्षयव्याध्यादिसंश्रयः ॥५२२॥ 527 जो निःश्वास-वायु बहुत बढ़ कर या (अवरुद्ध होकर) शब्द के साथ बाहर निकलता है, उसे प्रबुद्ध कहते हैं । क्षय रोग आदि के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ५. उल्लासित और उसका विनियोग
यो नासया शनैः पीतश्विरादुल्लासितस्तु सः । हृद्यगन्धे च सन्दिग्धे नियुक्तः पूर्वसूरिभिः ॥५२३॥ 528