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नृत्याध्यायः
पिहितौ स्फुरितौ स्यातामुन्मेषितनिमेषितौ ॥४८२॥ वितालिताभिधौ चैवं नवधेति पुटौ मतौ ।
493 पलकों के नौ भेद बताये गये हैं : १. सम, २. विवर्तित, ३. प्रसृत, ४. कुञ्चित, ५. पिहित, ६. स्फुरित, ७. उन्मेषित, ८. निमेषित और ९. वितालित । १. सम और उसका विनियोग
पुटौ साहजिको स्यातां समौ सहजगोचरौ ॥४८३॥ स्वाभाविक स्थिति में विद्यमान पलकें सम कही जाती हैं । स्वाभाविक स्थिति के प्रदर्शन में उसका विनियोग होता है। २. विवर्तित और उसका विनियोग
विवर्तितौ समुभ्रान्तौ क्रोधे प्रोक्तौ मनीषिभिः ॥४८४॥ 494 भ्रमित या अस्तव्यस्त पलकें विवर्तित कहलाती हैं । क्रोध के अभिनय में उनका विनियोग होता है। ३. प्रसूत और उसका विनियोग
प्रसृतौ त्वायतावुक्तौ विस्मये हर्षवीरयोः ॥४८॥ फैली या लम्बायमान पलकें प्रसृत कहलाती है। विस्मय, हर्ष, तथा वीरता के अभिनय में उनका विनियोग होता है। ४. कुञ्चिन और उसका विनियोग
अन्वर्थो कुञ्चितौ स्यातामनिष्टे प्रेक्षणे रसे ।। 495
गन्धे स्पर्श तथा प्रोक्तौ वीरसिंहसुसूनुना ॥४८६॥ सिकड़ी हई पलकें कुञ्चित कहलाती हैं । अनिष्ट, निरीक्षण, रस, गन्ध तथा स्पर्श के अभिनय में उनका विनियोग होता है। ५. पिहित और उसका विनियोग
अन्वर्थो पिहितौ प्रोक्तौ सुप्तेऽक्षिव्यथनेऽपि च ।। 496
मूर्छातिवर्षयोरुष्णवातधूमाञ्चनार्तिषु ॥४८७॥ बन्द की हई दोनों पलकें पिहित कहलाती हैं। शमन, नेत्रपीडा, मर्छा, अतिवृष्टि, उष्णवात (लू), धुओं, आंजन और पीड़ा के अभिनय में उनका विनियोग होता है।