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नृत्याध्याय
विद्वानों का मत है कि सम्पूर्ण रूप से चिरकाल तक रहकर भीतर देखने की जो इच्छा होती है वह निवर्णना कहलाती है और उस (निवर्णना) से युक्त दर्शन अनुवृत्त कहलाता है । ४. अवलोकित
अधस्ताद्दर्शनं यत् स्यादवलोकितमीरितम् ॥५०४॥ . नीचे पृथिवी की ओर तारना अवलोकित कहलाता है । ५. विलोकित
तद् विलोकितमाख्यातं पृष्ठतो यनिरीक्षणम् ॥५०५॥ 512 पृष्ठभाग से निरीक्षण करना या तारों को घुमाकर पीछे देखना विलोकित कहलाता है। ६. आलोकित
यदीक्षणं स्वभावस्थमुक्तमालोकितं हि तत् ॥५०६॥ स्वाभाविक स्थिति में रहकर दृष्टिपात करना आलोकित कहलाता है । . ७. उल्लोकित
यदुवं दर्शनं सद्भिस्तदुल्लोकितमीरितम् ॥५०७॥ 513 ऊपर की ओर जो दृष्टिपात किया जाता है, सज्जनों ने उसे उल्लोकित कहा है । ८. प्रविलोकित
पार्श्वतः प्रेक्षणं धीरंगदितं प्रविलोकितम् ॥५०८॥ पार्श्व देश से दुष्टिपात करने को विद्वानों ने प्रविलोकित कहा है। विनियोग
रसभावेषु तान्याहुः साधारण्येन · सूरयः ॥५०॥ 514 विद्वानों ने सामान्यत: रस-भावों के प्रदर्शन में विषयाभिमुखदर्शनों का विनियोग बताया है।
दृष्टि निरूपण समाप्त