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दृष्टि प्रकरण
यदि एक या दोनों भौहों को मृदुता के साथ टेढ़ा कर दिया जाय या झुका दिया जाय तो उसे कुञ्चिता भौं कहते हैं। विलास (क्रीड़ा खेल मनोरंजन ) किलकिंजित, मोट्टायित और कुट्टमित के अभिनय में नाट्याचार्यों ने उसका विनियोग बताया है । ( किलकिजित एक हाव है, जिसमें नायिका एक साथ कई भाव प्रकट करती है । मोट्टायित भी एक हाव है, जिसमें नायिका का अनुराग छिपाने की चेष्टा करने पर भी प्रकट हो जाता है । इसी प्रकार कुट्टमित भी एक हाव है, जिसमें नायिका सुखानुभव के समय बनावटी दुःखचेष्टा प्रकट करती है) ।
५. पतिता और उसका विनियोग
पतिता भ्ररधः प्राप्ता सद्वितीया क्रमेण वा ।
जुगुप्योः ।
हासे घ्राणे विस्मये च रोषे प्रसूयत्क्षेपयोश्च पति गदिते भ्रुवौ ॥ ४७६ ॥
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यदि दोनों भी एक साथ या क्रमशः एक-एक करके नीचे झुका दी जायें तो उन्हें पतिता कहा जाता हास, घाण, विस्मय, क्रोध, हर्ष और घृणा के अभिनय में उसका विनियोग होता है । ईर्ष्या और फेंकने के भावों के अभिव्यंजन में दोनों पतिता भौहों का प्रयोग करना चाहिए । ६. चतुरा और उसका विनियोग
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स्तोकस्पन्दाऽलसा या भ्रू रायता स्याद् द्वितीयया । चतुरा सा भवेत्सौम्यसंस्पर्शे ललितेऽपि च । श्रृङ्गाराभिनयेऽप्येवं ज्ञेया अभिनयाः परे ॥४८० ॥
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जो भी किञ्चित् चलती हो, आलस्ययुक्त हो और दूसरी भों के साथ फैली हुई हो उसे चतुर । कहते हैं । कोमल स्पर्श, ललित वस्तु और शृंगारिक अभिनय में उसका विनियोग होता है । अन्य अभिनयों में भी इसी प्रकार उसका विनियोग समझ लेना चाहिए ।
७. भृकुटि और उसका विनियोग
नौ प्रकार की पलकों का अभिनय
समौ विततौ स्यातां प्रसृतौ कुञ्चितौ तथा ।
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द्वितीयया सहामू लोत्क्षिप्ता
कुटिना (? भ्रू कुटी) रुषि ॥ ४८१ ॥
यदि एक भौं दूसरी भौं के साथ जड़ के ऊपर उठा दी जाय ( अर्थात खूब तान दी जाय ) तो उसे भ्रुकुटी कहते
हैं। क्रोध के अभिनय में उसका विनियोग होता है।
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पलकों के भेद
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