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के भेद
नृत्याध्यायः
सात प्रकार की भ्र (भौं) का अभिनय
सहजा रेचितोत्क्षिप्ता कुञ्चिता पतिता तथा । चतुरा भ्रुकुटी चेति सद्भिः सप्तधोदिता ।
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सज्जनों ने भौं के सात भेद बताये हैं : १. सहजा, २. रेचिता, ३. उत्क्षिप्ता, ४. कुञ्चिता, ५. पतिता, ६. चतुरा और ७. कुटी ।
१. सहजा और उसका विनियोग
सहजा तु स्वभावस्था भावेषु सहजेषु सा ॥। ४७५ || - स्वाभाविक स्थिति में रहने वाली भौं सहजा कहलाती है । सहज भावों के अभिनय में उसका विनियोग है।
२. रेचिता और उसका विनियोग
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भ्रूरेका ललितोत्क्षिप्ता रेचिता नृत्तसंश्रया ॥ ४७६ ॥ 485 एक ही भौं को सुन्दरता के साथ ऊपर उठाने को रचिता कहते हैं। ललित भावों के अभिव्यंजन में उसका विनियोग होता है ।
३. उत्क्षिप्ता और उसका विनियोग
श्रन्वर्थलक्षणोत्क्षिप्ता
क्रमाद्वाथान्यया
सह । कोपे स्त्रीणां वितर्के च श्रवणे दर्शने निजे ।
लीलादावपिलायां नियोज्यैषा मनीषिभिः ॥ ४७७ ||
यदि भौवों को क्रमशः अथवा एक के साथ दूसरी को ( अर्थात् एक साथ ) ऊपर उठाया जाय तो उसे उत्क्षिप्ता कहा जाता है। स्त्रियों के कोप, तर्क-वितर्क, श्रवण, आत्मदर्शन, लीला और अवज्ञा के भावों के अभिव्यंजन में मनीषियों ने उसका विनियोग बताया है ।
४. कुञ्चिता और उसका विनियोग
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मृदुभङ्गा तु कार्यद्वा सार्धद्वितीयया । वासा कुञ्चिता प्रोक्ता विलासे किलकिञ्चिते ।
मोट्टायिते कुट्टमिते नियुक्ता सा प्रयोक्तृभिः || ४७८ ॥
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