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________________ के भेद नृत्याध्यायः सात प्रकार की भ्र (भौं) का अभिनय सहजा रेचितोत्क्षिप्ता कुञ्चिता पतिता तथा । चतुरा भ्रुकुटी चेति सद्भिः सप्तधोदिता । 484 सज्जनों ने भौं के सात भेद बताये हैं : १. सहजा, २. रेचिता, ३. उत्क्षिप्ता, ४. कुञ्चिता, ५. पतिता, ६. चतुरा और ७. कुटी । १. सहजा और उसका विनियोग सहजा तु स्वभावस्था भावेषु सहजेषु सा ॥। ४७५ || - स्वाभाविक स्थिति में रहने वाली भौं सहजा कहलाती है । सहज भावों के अभिनय में उसका विनियोग है। २. रेचिता और उसका विनियोग १५४ भ्रूरेका ललितोत्क्षिप्ता रेचिता नृत्तसंश्रया ॥ ४७६ ॥ 485 एक ही भौं को सुन्दरता के साथ ऊपर उठाने को रचिता कहते हैं। ललित भावों के अभिव्यंजन में उसका विनियोग होता है । ३. उत्क्षिप्ता और उसका विनियोग श्रन्वर्थलक्षणोत्क्षिप्ता क्रमाद्वाथान्यया सह । कोपे स्त्रीणां वितर्के च श्रवणे दर्शने निजे । लीलादावपिलायां नियोज्यैषा मनीषिभिः ॥ ४७७ || यदि भौवों को क्रमशः अथवा एक के साथ दूसरी को ( अर्थात् एक साथ ) ऊपर उठाया जाय तो उसे उत्क्षिप्ता कहा जाता है। स्त्रियों के कोप, तर्क-वितर्क, श्रवण, आत्मदर्शन, लीला और अवज्ञा के भावों के अभिव्यंजन में मनीषियों ने उसका विनियोग बताया है । ४. कुञ्चिता और उसका विनियोग 486 मृदुभङ्गा तु कार्यद्वा सार्धद्वितीयया । वासा कुञ्चिता प्रोक्ता विलासे किलकिञ्चिते । मोट्टायिते कुट्टमिते नियुक्ता सा प्रयोक्तृभिः || ४७८ ॥ 487 488
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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