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दृष्टि प्रकरण
जो दृष्टि नीचे गिरी हो, पलक ऊपर उठी हो, आँसू बहा रही हो, नाक के अग्रभाग पर जमी हो और शोक के कारण जिसकी पुतली शिथिल पड़ गयी हो, वह करुणा कहलाती है । करुण रस के अभिनय में उसका विनियोग होता है ।
४. रौद्री और उसका विनियोग
रूक्षा
क्रूरा स्तब्धतारा
चकितोभपुटारुणा । उग्रा भ्रुकुटिभीष्मा या सा रौद्री दृष्टिरीरिता ॥ ४३५॥
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जो दृष्टि रूक्ष, क्रूर, स्थिर पलकों वाली, चकित, उग्र पलकों वाली, अरुण, तीक्ष्ण और भयानक भृकुटि वाली हो, वह रौद्री कहलाती है । रौद्र रस के अभिनय में उसका विनियोग होता है ।
५. वीरा और उसका विनियोग
प्रक्षुब्धा समतारा या गम्भीरोत्फुल्लमध्यभाक् ।
दीप्ता विकासिता दृष्टिवरा सा वीरगोचरा ॥४३६ ॥ माधुर्यधैर्यगाम्भीर्यौदार्याणि faquat | शोभातेजोविशेषादीन् सत्त्वभेदांश्च
तु
सा किल ॥४३७॥
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जो दृष्टि क्षोभरहित, सम तारों वाली, गंभीर, उत्फुल्ल मध्य भाग वाली, दीप्त, विकसित और वीरोचित हो, वह वीरा कहलाती है । मधुरता, धीरता, गंभीरता, उदारता, शोभा, विशेष तेज और अनेक प्रकार के पराक्रमों की अभिव्यक्ति में उसका विनियोग होता है ।
६. भयानका और उसका विनियोग
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विलोलोवृत्ततारा या दृश्यात्पलायमानेव
स्तब्धोवृत्तपुटोभया । दृष्टिर्भयानका ॥४३८ ॥
सोक्ता
कर
चंचल, फड़कते हुए तारों वाली, स्तब्ध एवं खुले हुए पलकों वाली और देखने से मानो पलायन देने वाली दृष्टि भयानका कहलाती है । भयानक रस के भावों के अभिव्यंजन में उसका विनियोग होता है । ७. वीभत्सा और उसका विनियोग
घृणयोद्वेगमापन्ना दृश्याद् या लोलतारका । निकुञ्चितपुटापाङ्गा संश्लिष्टचलपक्ष्मभाक् । बीभत्सा दृष्टिरुक्ता सा बोभत्सरससंश्रया ॥४३६॥
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