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दृष्टि प्रकरण
मुसकुराती हुई, सिकुड़ी हुई कोरों वाली, मधुर, प्र-भंगिमा से युक्त, विकसित, कामभाव प्रकट करने वाली और लम्बी दृष्टि ललिता कहलाती है । ललित भावों के अभिव्यंजन में घीर पुरुषों ने उसका विनियोग बताया है।
१३. वितकता और उसका विनियोग
विकाशिततारका ।
तर्केऽभुते पुटद्वन्द्वा या अधस्तात्सञ्चरन्ती सा दृष्टिरुक्ता वितर्कता ||४६२ ॥
अद्भुत तर्क में लगी हुई दोनों पलकों वाली, खिले हुए तारों वाली और नीचे की ओर संचरण करने वाली दृष्टि वितर्किता कहलाती है । ( अद्भुत रस को उपस्थित करने के अभिनय में उसका विनियोग होता है ) । १४. अर्धमुकुला और उसका विनियोग
स्तोकोन्मीलितताराख्या माना कुञ्चत्पुटद्वया । किञ्चिदुत्फुल्लपक्ष्माग्रा दृक् सार्धमुकुला सुखे ॥४६३॥
अर्ध मुकुलित तारों वाली, कुछ कुञ्चित हुई दोनों पलकों वाली और ईषत् खिली हुई बरौनियों के अग्रभाग वाली दृष्टि अर्धमुकुला कहलाती है । सुख के भावों के अभिव्यंजन में उसका विनियोग होता है । १५: आकेकरा और उसका विनियोग
श्राकुणितपुटापाङ्गा मुहुस्तरलतारका । तिर्यग्निवेशिता यार्धनिमेषसहिता च दृक् ॥४६४॥ साकेकरा दुर्निरीक्ष्ये विच्छेदप्रेक्षितेऽपि च । स्नेहविच्छेदतः कान्ते सापराधे यदीक्षणम् । वीरसिंहसुतेनोक्तं विच्छेदप्रेक्षितं हि तत् ॥ ४६५ ॥
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१६. विभ्रान्ता और उसका विनियोग
या विश्रान्तिं कचित्रेति लोलोत्फुल्लकनीनिका ।
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जिसकी पलकें तथा कोरें कुछ सिकुड़ी हुई हों, पुतलियाँ बार-बार घूमती हों, जो तिरछी चितवन से युक्त हो और आधी खुली हुई हो, वह दृष्टि आकेकरा कहलाती है। कठिनाई से देखने और स्नेहभंगपूर्वक दृष्टिपात करने में उसका विनियोग होता है । प्रिय के अपराधी होने पर स्नेहविच्छेदपूर्वक जो दृष्टि उस पर डाली जाती है, उसको अशोकमल्ल ने विच्छेदप्रेक्षित कहा है ।
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