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दृष्टि प्रकरण ४. लज्जिता और उसका विनियोग
मनागञ्चितपक्ष्माना पात्रस्तकनीनिका । 457
संत्रस्तोर्ध्वपुटा दृष्टिलज्जिता लज्जिते स्त्रियाः ॥४५३॥ बरौनियों से कुछ सिकड़ी हुई अग्रभाग वाली, लज्जा से गिरी हुई पुतलियों वाली, बहुत डरी हुई और ऊपर उठी हुई पलकों वाली दृष्टि लज्जिता कहलाती है । स्त्रियों की लज्जा का भाव प्रकट करने में उसका विनियोग होता है। ५. ग्लाना और उसका विनियोग
___ श्लथपक्ष्मपुटा भ्रर्या मलिना मग्नतारका । 458
अल्पसञ्चारिणी दृष्टिः ग्लानौ ग्लाना निरूपिता ॥४५४॥ शिथिल पलकों, मलिन भवों, डूबी हुई बरौनियों वाली और मन्द-मन्द चलने वाली दृष्टि ग्लाना कहलाती है। ग्लानि के भावों के अभिव्यंजन में उसका विनियोग होता है। ६. शंकिता और उसका विनियोग
दृश्याद् द्रुतनिवृत्ता च मुहुर्लोलस्थिरोन्नता । 459 तिरश्चीना यथा गूढा तथा चकिततारका ।
सा दृष्टिः शङ्किता प्रोक्ता शङ्कायां पूर्वसूरिभिः ॥४५॥ 460 दृश्य पदार्थ से तुरन्त लौट आने वाली, बार-बार चंचल, स्थिर, ऊपर उठी हुई, तिरछी, गूढ़ और चकित तारों वाली दष्टि शंकिता कहलाती है। पूर्वाचार्यों ने शंका (द्विविधा, आशंका) के अभिनय में उसका विनियोग बताया है। ७. विषण्णा और उसका विनियोग
स्रस्तापागा स्तब्धतारा विस्फारितपुटोभया ।
निमेषिणी या सा दृष्टिविषण्णोक्ता विषादिनी ॥४५६॥ 461 गिरी हुई पलकों वाली, निश्चल पुतली वाली, फैली हुई दोनों पलकों वाली और पलक भांजने वाली दृष्टि विषण्णा कहलाती है। विषाद का भाव व्यक्त करने में उसका विनियोग होता है । ८. मुकुला और उसका विनियोग
योल्लसल्लग्नपक्ष्माना सुखामीलत्कनीनिका । सा दृष्टिर्मुकुलानन्दे मजुलर्शगन्धयोः ॥४५७॥ 462