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दृष्टि अभिनय और उनका विनियोग [अशोकमल्ल ने दृष्टि अभिनय के छत्तीस प्रकार बताये हैं, जिनमें रसजा दृष्टि के आठ, स्थायी भावजा दृष्टि के आठ और संचारी भावजा दृष्टि के बीस भेद होते हैं। रसजा दृष्टि के भेद
कान्ता हास्या च करुणा रौद्रा वीरा भयानका ।
बीभत्सा चाद्भुतेत्यष्टौ विज्ञेया रसदृष्टयः ॥४२६॥ 427 रसजा दृष्टि के आठ भेद होते हैं : १. कान्ता, २. हास्या, ३. करुणा, ४. रौद्रा, ५. वीरा, ६. भयानका, ७. बीभत्सा और ८. अद्भुता। स्थायी भावजा दृष्टि के भेद
स्निग्धा हृष्टा तथा दीना क्रुद्धा दो(?)प्ता भयान्विता ।
जुगुप्सिता विस्मितेति दृशोऽष्टौ स्थायिभावजाः ॥४२७॥428 स्थायी भावों से उत्पन्न दृष्टि के आठ भेद होते हैं: १. स्निग्धा, २. हृष्टा, ३. दीना, ४. क्रुद्धा, ५. दुप्ता, ६. भयान्विता, ७. जुगुप्सिता और ८. विस्मिता। संचारी भावजा दृष्टि के भेद
शून्या च मलिना श्रान्ता तथान्या लज्जिताभिधा । ग्लाना तथा शङ्किता च विषण्णा मुकुला ततः ॥४२८॥429 कुञ्चिता चाभितप्ता च जिह्मा च ललिता तथा । वितर्किता ततोऽप्यर्धमुकुलाकेकरा परा ॥४२६॥430 विभ्रान्ता विप्लुता त्रस्ता विशोका(? कोशा)मदिरा तथा। विशतिर्व्यभिचारिण्यो दृष्टयो मुनिनोदिताः ॥४३०॥431