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नत्याध्यायः
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प्रत्यंग भूषणों का निरूपण भूष्यन्तेऽङ्गानि यस्तानि भूषणानि प्रचक्षते । प्रत्यङ्गत्वं कथं तेषां तन्मतेऽप्युपपद्यते ॥४२३॥
मणिबन्धौ जानुनी च प्रत्यङ्गे स्तो यथाकथम् । ___424 आभूषण से अंग सुशोभित (विभूषित) होते हैं । इसलिए उन्हें भूषण कहा गया है । किन्तु जो यथाकथञ्चित् मणिबन्धों और जानुओं को प्रत्यंग मानते हैं उनके मत में भी आभूषणों में प्रत्यंगत्व कैसे सिद्ध होता है ? .
अत्र प्राह समाधानमशोको विदुषां वरः ॥४२४॥ शक्त्या यदपि बाधःस्याद् दृश्यतेऽत्र तथापि हि । - 425 वृत्त्या लक्षणया तेषां तदकृतिहेतुता ।
प्रत्यङ्गत्वं भवेदेवमिति सर्व समञ्जसम् ॥४२॥ 428 इस समस्या का समाधान विद्वद्वर अशोकमल्ल ने इस प्रकार किया है कि यद्यपि भूषण का प्रत्यंगत्व अभिघ शक्ति से सिद्ध नहीं होता, तथापि लक्षणा वृत्ति से सिद्ध हो जाता है; क्योंकि वे (मणिबन्ध तथा जानु) शोभा के कारण हैं । इसलिए प्रत्यंग हैं । इस प्रकार उनका सामंजस्य हो जाता है।
नौ प्रकार के प्रत्यंगों का निरूपण समाप्त