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अंग प्रत्यंग प्रकरण
जो उरु घुटने के अन्तर्गत हो वह वलित कहलाता है । भरत मुनि ने स्त्रियों की स्वच्छन्द गति का भाव प्रकट करने में उसका विनियोग बताया है। ४. उद्वर्तित और उसका विनियोग _ मुहुरन्तर्बहिःक्षेपात् पाणैरगतलस्य च ।
उर्तितस्ताण्डवेऽसौ व्यायामाभिनये तथा ॥३६७॥ 402 यदि एडी (पाष्णि) के अग्रभाग को बार-बार भीतर और बाहर चलाया जाय तो वह उरु उद्वर्तित कहलाता है । ताण्डव तथा नृत्य व्यायाम के प्रदर्शन में उसका विनियोग होता है। ५. निवतित और उसका विनियोग
यो मध्यगतया पार्ष्या भवेत् स तु निवर्तितः ।
शमसम्भवयोरुक्तो वीरसिंह सुसूनुना ॥३६८॥ 403 जिस उरु के मध्यभाग में एड़ी को रख दिया जाय वह निर्तित कहलाता है। अशोकमल्ल ने शान्ति तथा संभव वस्तु या उत्पत्ति के भाव-प्रदर्शन में उसका विनियोग बताया है।
दस प्रकार का जंघाभिनय जंघा के भंद
क्षिप्ता नतोद्वाहिताख्यावतिता परिवर्तिता । जङ्घवं पञ्चधा प्रोक्ताऽशोकमल्लेन भूभुजा ॥३६॥ 404 बहिर्गता तिरश्चीना निःसृता कम्पिता तथा । परावृत्ताभिधा [चासौ] प्रोक्ता पश्चविधापरः ।
405 अशोकमल्ल ने जंघा अभिनय के पांच भेद बताये हैं, जिनके नाम हैं : १. क्षिप्ता, २. नता, ३. उद्वाहिता, ४. आवर्तिता और ५. परिवतिता। दूसरे आचार्यों के मत से उसके पाँच भेद और होते हैं : १. बहिर्गता २. तिरश्चीना, ३. निःसता, ४. कम्पिता और ५, परावृत्ता। १. लिप्ता और उसका विनियोग
बहिःक्षेपाद् भवेत् क्षिप्ता व्यायामे ताण्डवेऽपि च ॥४००॥ यदि जंघा को बाहर की ओर चलाया जाय तो वह क्षिप्ता कहलाती है। व्यायाम और ताण्डव नृत्य के अभिनय में उसका विनियोग होता है।