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नत्याध्यायः
अर्थ का अनुसरण करने वाला उदर ( अर्थात् ऐसा उदर, जो खाली रहने पर भी भरा मालूम हो रिक्तपूर्ण कहलाता है । श्वास रोग के अभिनय में उसका विनियोग होता है।
चार प्रकार का पृष्ठाभिनय । क्रियाभिरुदरोक्ताभिर्यतः पृष्ठं विकारवत् । ... 397
ततः पृथग्मया नास्य लक्षणं प्रतिपादितम् ॥३६३॥ उदराभिनय के जो लक्षण-विनियोग बताये गये हैं, उन्हीं से ( स्वभावतः ) पृष्ठ का भी व्यत्यय हो जाता है। अतः पृष्ठाभिनय का पृथक् रूप से निरूपण नहीं किया गया। (अर्थात् उदाराभिनय से ही पष्ठाभिनय की क्रियाएँ भी समझ लेनी चाहिएँ) ।
पाँच प्रकार का उरु अभिनय उरु ( जाँघ ) अभिनय के भेद
स्तब्धस्ततः कम्पितश्च वलितोद्वतितावपि । 398
निवर्तितस्तथेत्यूरोः पञ्चधा लक्षणं मतम् । उरु के पाँच भेद कहे गये हैं : १. स्तब्ध, २. कम्पित, ३. वलित, ४. उद्भर्तित और ५. विवर्तित । १. स्तब्ध और उसका विनियोग
यो भवेनिष्क्रियः स्तब्धः स साध्वसविषादयोः ॥३६४॥ 399 जो उरु निष्क्रिय या निश्चेष्ट हो, वह स्तब्ध कहलाता है। भय और विषाद के अभिनय में उसका विनियोग होता है। २. कम्पित और उसका विनियोग
नतोन्नतौ मुहुः स्यातां पाश्वौं यस्य स कम्पितः ।
अधमानां गतौ प्रोक्तो विनियोगोऽस्य सूरिभिः ॥३६॥ 400 जिस उरु में दोनों पार्श्व बार-बार झुके और उठे, वह कम्पित कहलाता है। विद्वानों ने कहा है कि अधम व्यक्तियों की गति को अभिव्यक्त करने में उसका विनियोग होता है। ३. वलित और उसका विनियोग
जानुन्यन्तर्गतो यः स्याद्रुः स वलिताभिधः । योषितां स्वरगमने मुनिना स नियोजितः ॥३६६॥ 401
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