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नृत्याध्यायः
राक्षस के अभिनय में मुकुल हस्त को अधोमुख करके उस की उँगलियों को कम्पित कर देना चाहिए। यदि किसी वस्तु को ऊपर फेंकने तथा जल-कणों का भाव प्रदर्शित करना हो तो उसकी ऊर्ध्वमुख सटी हुई उँगलियों को खोल देना चाहिए ।
असौ च सत्वरे दाने विकाश्य
प्रकृतिं गतः ।
मुहुर्मुहुरथ क्षिप्तमुक्ताङ्गुलिरसौ
द्रव्य गणनायां प्रकीर्तितः ॥ १८८ ॥ पार्श्वत्पार्श्वोत्तरावधि ।
शीघ्रता और दान के अभिनय में मुकुल हस्त को विकसित कर (पुनः) यथापूर्व कर देना चाहिए । यदि द्रव्यों की गणना का भाव-प्रदर्शन करना हो तो उसकी उँगलियों को खोलकर उसे एक बगल से दूसरी बगल में करना चाहिए ।
उच्छ्वासे च्युतसन्दंशो मुखक्षेत्रगतो
भवेत् ॥१८६॥
उच्छ्वास (ऊर्ध्वं स्वास) लेने के आशय में उसे सैंड़सी की तरह खोल कर मुख के पास रखना चाहिए।
पञ्चसंख्यादिनिर्देशे तथाच्छुरितकेऽप्यसौ । यत्कुचादौ कामिनीनां सशब्दं नखलेखनम् । श्रङ्गुलीपञ्च केन स्यात्तदाच्छुरितकं विदुः ॥ १६० ॥
पाँच की संख्या आदि बताने तथा नख-क्षत के अभिनय में मुकुल हस्त का प्रयोग करना चाहिए। कामिनियों के कुच आदि पर पाँचों उँगलियों के प्रहार से शब्द के साथ जो नख-क्षत किया जाता है उसी को आच्छुरितक कहते हैं ।
२२. पद्मकोश हस्त और उसका विनियोग
श्रङ्गुष्ठसहिताङ्गुल्यो
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विरलाश्चापवत्तताः ।
ऊर्ध्वा यस्मिन्नलग्नाग्राः स करः पद्मकोशकः ॥१६१॥
यदि अंगुष्ठ सहित पांचों उँगलियाँ अलग-अलग रहकर धनुष की तरह मुड़कर ऊर्ध्वमुख हों और उनके अग्रभाग एक-दूसरे को स्पर्श न करते हों, तो उस मुद्रा को पद्मकोश हस्त कहते हैं |
सौ देवार्चने स्त्रीणां कुचयोस्तद्ग्रहेऽपि च । कबरीग्रहणे स्त्रीणां पुष्पाणां च ग्रहे तथा ॥ १६२ ॥
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