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हस्त प्रकरण
(अर्थात् अधम लोगों) के अभिनय में हस्त-प्रचार के विभिन्न रूपों का उपयोग करना चाहिए। इस प्रकार विद्वानों ने हस्ताभिनय के तीन प्रकार (उत्तम, मध्यम और अधम) बताये हैं ।
नियोज्यास्तूत्तमः पात्रः प्रत्णाधुपबृंहिताः । 332 ससौष्ठवाः सुलक्ष्माणः करास्तमध्यमैः पुनः ॥३२२॥ सुव्यक्तलक्षणाः कार्याः सौष्ठवाधिष्ठितास्तथा ।
333 नीचस्तस्ते प्रयोक्तव्याः लोकवृत्तसमाश्रयाः ॥३२३॥ श्रेष्ठ अभिनेताओं को प्रत्यंग आदि से परिपुष्ट, सुन्दर तथा सुलक्षण युक्त हस्तों का प्रयोग करना चाहिए । मध्यम अभिनेताओं को सुलक्षण तथा सुन्दर हस्तों का उपयोग करना चाहिए । इसी प्रकार निकृष्ट अभिनेताओं को लोक-प्रचलित (सामान्य) हस्तों का प्रयोग करना चाहिए।
मच्छिते तन्द्रिते भीते व्याकुले च जुगुप्सिते ।। 334 ग्लाने जरादित सुप्ते ज्वरिते शोकपीडिते ॥३२४॥ शीतार्ते व्याधिते मते विषण्णोन्मत्तयोरपि ।
335 चिन्तान्विते प्रमत्तेऽपि निश्चेष्टे तापसेऽपि च ॥३२५॥ न कराभिनयः कार्य इत्युक्तं पूर्वसूरिभिः ।
336 पूर्वाचार्यों का अभिमत है कि मूछित, तन्द्रित, भयभीत, व्याकुल ,निन्द्रित, ग्लानि से युक्त, बृद्धावस्था-पीड़ित, सुप्त, ज्वरग्रस्त, शोकान्वित, शीत-पीड़ित, रोगग्रस्त, मत्त, दुःखी, मदोन्मत्त, चिन्तातुर, पागल, निश्चेष्ट और तपस्वी आदि के भावाभिव्यंजन में हस्ताभिनय नहीं करना चाहिए (अपितु सात्विक भावों द्वारा ही उनका प्रदर्शन करना चाहिए )।
ये करास्त्वान्तरं भावं सूचयन्तीह ते मताः ।
मूच्छितादिष्वपि प्रायः कराः कर्कटकादयः ॥३२६॥ 337 जो हस्त आन्तरिक भावों को प्रकट करें वे अभीष्ट एवं उचित होते हैं। प्रायः कर्कट आदि हस्त मूच्छित आदि के भावाभिव्यंजन के लिए उपयुक्त समझे जाते हैं।
___ हस्ताभिनय प्रकरण समाप्त
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