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नत्याध्यायः
शीत, मूर्छा, गर्व, हर्ष, व्याधि, भय, विषाद, लज्जा और ससंभ्रम (उत्तावली) के भाव-प्रदर्शन में इस वक्ष का विनियोग होता है। ४. प्रकम्पित और उसका विनियोग
निरन्तरोत्क्षेपणैर्यत्कम्पितं तत्प्रकम्पितम् ।
भीतिकासश्रमश्वासहिक्काहासेषु रोदने ॥३३१॥ 343 जो वक्ष बार-बार ऊपर उठाकर प्रकम्पित किया जाय, उसे प्रकम्पित कहते हैं । भय, खांसी, श्रम, सांस, हिचकी, हँसी और रोने के अभिनय में इस वक्ष का नियोग होता है । ५. उद्वाहित और उसका विनियोग
यनिष्कम्पमृत्क्षिप्तं तदुद्वाहितमोरितम् ।
जृम्भोच्चवीक्षणे दीर्घोच्छ्वासाभिनयने च तत् ॥३३२॥ 344 जो वक्ष कम्पन-रहित हो तथा धीरे से चालित किया जाय, उसे उद्वाहित कहते हैं । जम्हाई लेने, ऊपर देखने और लम्बी साँस खींचने के अभिनय में इस वक्ष का विनियोग होता है।
पाँच प्रकार का पाश्र्वाभिनय पाश्र्वाभिनय के भेद
विवर्तिताभिधमथापसृतं च प्रसारितम् ।
नतं चोन्नतमेवेति पावं पञ्चविधं भवेत् । पार्श्व के पांच भेद हैं : १. विवर्तित, २. अपसृत, ३. प्रसारित, ४. नत और ५. उन्नत । १. वितित और उसका विनियोग
विवर्तितं परावृत्तौ भवेत् त्रिकविवर्तनात् ॥३३३॥ यदि कटिदेश को घुमा दिया जाय, तो उसे विवर्तित पार्श्व कहते हैं। पीछे की ओर मुड़ने के अभिनय में उसका विनियोग होता है। २. अपसृत और उसका विनियोग
अपसृतं तन्निवृत्त्या स्यात्पार्श्वस्य विवर्त्तने ॥३३४॥ 348 यदि कटिदेश की निवृत्ति (अर्थात् उसको विवर्तित में घुमाकर जहाँ ले जाया गया हो, वहाँ से लौटाने में) की जाय तो उसे अपसत पार्श्व कहते हैं । पार्श्व को घुमाने के अभिनय में उसका विनियोग होता है।
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