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हस्त प्रकरण
मतः ।
- प्रणामकरणे ग्रथने च प्रसूनानां तथ्योक्तौ चादिमे प्रणाम करने, फूल गूंथने, सत्य बोलने और आदिम मत के अभिनय में खटकावर्धन हस्त का विनियोग होता है ।
मते ॥ २३७॥
मतान्तरे कामिनां स पर्णादिग्र (ह) णे करः । तिर्यगास्योऽथ सूर्यस्योदये तृत्तानितो मतः ॥ २३८ ॥ निर्णयाङ्गीकृतौ योज्यो मितेऽपि स युक्तितः ।
खटकावर्धन हस्ताभिनय के अन्य प्रयोगों को शास्त्रानुसार जान लेना चाहिए ।
८. उत्संग हस्त और उसका विनियोग
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कमियों के मतभेद और पत्ते आदि के ग्रहण के अभिनय में उक्त हस्त को तिरछा करके प्रस्तुत करना चाहिए। सूर्योदय के अभिनय में उसे उत्तान रखना चाहिए । निर्णय को स्वीकार करने और परिमितता का भाव दर्शाने में उसे यथाविधि प्रयुक्त करना चाहिए ।
अस्य क्रियान्तराण्येवं सद्भिरुह्यानि शास्त्रतः ॥२३६॥
स्वस्तिका कृतिसम्प्राप्तावन्योन्यस्कन्धदेशगौ
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अरालौ विततौ स्वाभिमुखौ स्यातां यदा तदा ॥ २४० ॥ उत्सङ्ग हस्तमाचष्टाशोकमल्लो नृपाग्रणीः ।
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बहुयत्नप्रसाध्येऽर्थे अलङ्कारानुपादाने लज्जादावपि
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यदि दोनों अराल हस्तों को स्वस्तिक हस्त मुद्रा में करके संमुखावस्था में एक-दूसरे की बाजुओं के ऊपर रख दिया जाय तो उसे महाराज अशोकमल्ल ने, उत्संग हस्त कहा है ।
स्वस्तिकं
केचिदत्राहुर्या
दक्षिणदेशगम् ॥ २४१॥ त्वत्र विचक्षणाः ।
तुषाराश्लेषयोरपि ।
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अधस्तलत्वमप्याहुरन्ये
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कुछ विद्वान् उक्त हस्त को दक्षिण देशगामी स्वस्तिक कहते हैं । दूसरे विद्वान् उसे अधस्तल भी कहते हैं ।
सुभ्रु वाम् ॥२४२॥ 249
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