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हस्त प्रकरण
-हारमौलाधाकर्षणे करौ ॥२५६॥ हार और मुकुट आदि के उतारने में चतुरसा हस्त का विनियोग होता है। २. उवृत्त हस्त और उसका विनियोग
चतुरस्रौ विधायादावथोद्वेष्टितकर्मणा । 264 हंसपक्षावुरोदेशे कृतावेकस्तयोः करः ॥२५७॥ . व्यावृत्तिक्रिययोध्वं तु गत्वोत्तानो वृजेदधः । .265 प्रथान्यः परिवृत्त्याधोमुखो वक्षो वृजेद्यदि ॥२५८॥
तवृत्तौ करौ स्यातांपहले दोनों हाथों को उद्वष्टित मुद्रा के द्वारा चतुरस्र बना दिया जाय; तदनन्तर उन्हें हंसपक्ष मुद्रा में करके हृदय पर रख दिया जाय। उनमें से एक को व्यावृत्त क्रिया द्वारा ऊपर ले जाकर उत्तानावस्था में नीचे कर दिया जाय । दूसरे हंसपक्ष हस्त को परिवृत्त करके अघोमुख छाती पर रख दिया जाय; तो उस अभिनय मुद्रा को उद्धृत्त हस्त कहते हैं।
--तालवृन्तनिदर्शने । 266 पंखे के अभिनय में उद्वृत्त हस्तों का विनियोग होता है।
एतावेव परे प्राहस्तालवृन्ताभिधौ करौ ॥२५॥ कुछ नाट्याचार्यों ने उक्त उद्वृत्त हस्तों को तालवृन्त नाम से कहा है।
व्यावृत्तपरिवृत्तौ चेत् हंसपक्षौ पुरोमुखौ । 267
तदोवृत्तौ जगुः केचित्यदि दोनों हंसपक्ष हस्तों को व्यावृत्त तथा परिवृत्त करके पूर्व मुख कर दिया जाय तो, कुछ विद्वानों के मत से, उसे उद्धृत्त हस्त कहते हैं।
-जयशब्दनिरूपणे ॥२६०॥ .. 'जय' शब्द के उच्चारण में उसका विनियोग होता है। ३. तलमुख हस्त और उसका विनियोग
उद्वत्तसंज्ञको हस्तौ त्र्यलो भूत्वा स्वपार्श्वयोः । मिथोऽभिमुखतां यातौ हंसपक्षौ यदा करौ ।
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