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नृत्याध्यायः
तदा तलमुखौ स्यातांजब दोनों हस्त उद्वत्त में स्थित होकर हंसपक्ष की मुद्रा बनाते हैं और अपने पाश्चों में तिरछे (यस्र) होकर आमने-सामने अवस्थित किये जाते हैं, तब उन्हें तलमुख हस्त कहते हैं।
-मधुरे मईलध्वनौ ॥२६१। 269 मईल (मृदंग के समान वाद्ययंत्र) की मधुर ध्वनि के अभिनय में तलमुख हस्तों का विनियोग होता है। ४. नितम्ब हस्त
उत्तानोऽधो मुखीभूय क्रमादंसप्रदेशतः । करौ पताको निर्गम्य नितम्बक्षेत्रमागतौ । 270
रेचकं विदधाते च नितम्बौ कथितौ तदा ॥२६२॥ जब पताक की मुद्रा में दोनों हस्त उत्तान तथा अधोमुख होकर क्रमशः दोनों कन्धों से बाहर की ओर निकल कर नितम्ब तक आ जाय और नितम्ब रेचक में हो, तब उन्हें नितम्ब हस्त कहते हैं। ५. केशबन्ध हस्त
पताको त्रिपताको वा केशदेशाद्विनिर्गतौ ॥२६३॥ 271 अस्पृशन्तौ करौ पावर्ची पार्श्वदेशसमुत्थितौ । उत्तानाऽधोमुखौ शश्वन्निक्षिप्योपशिरः स्थितौ । 272
पृथगुत्तानितौ चेत् सः (? तौ) केशबन्धौ तदोदितौ ।२६४॥ जब पताक या त्रिपताक मुद्रा में दोनों हस्त पार्श्वदेश से उठकर, दोनों पावों से विलग होकर, उत्तान एवं अधोमुखावस्था में शिर पर पहुँच जाय; फिर वहाँ से निकल कर उन्हें अलग-अलग उत्तान करके बारबार गतिशील करके शिर के समीप अवस्थित किया जाय, तब उन्हें केशबन्ध हस्त कहते हैं। ६. उत्तानवञ्चित हस्त
अंसभालकपोलानां मध्येऽन्यतमदेशगौ । 273 अन्योन्याभिमुखावीषत्तिर्यञ्चौ कूपरांसयोः ॥२६५॥ मनाक्कलितयोरुतलौ स्थित्वा क्षणं करौ।। 274
त्रिपताको प्रचलितौ प्रोक्तावुत्तानवञ्चितौ ॥२६६॥ १०६