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हस्त प्रकरण
जब दोनों त्रिपताक हस्त कन्धा, ललाट तथा कपोल (गाल) में से किसी एक पर ले जा कर परस्पर आमने-सामने कुछ तिरछे होकर किञ्चिन्मात्र पकड़ी हुई कुहनी तथा कन्धे के ऊपर क्षण भर ठहर कर चलायमान हो जाय, तब उन्हें उत्तानवञ्चित हस्त कहते हैं । ७. लताकर हस्त
पार्श्वयोर्दोलितौ तिर्यक् प्रसृतौ च यदा करौ ।
पताको त्रिपताकौ वा तदा हस्तौ लताकरौ ॥२६७॥ जब दोनों पताक या विपताक हस्त दोनों पाओं (अगल-बगल) में तिरछे फैले तथा थिरकते रहें, तब उन्हें लताकर हस्त कहते हैं। ८. करिहस्त
दोलितोत्थो लताहस्तः दोलावत्पार्श्वयोर्यदि। 276 अन्यः कर्णस्थितो यत्र खटकास्योऽथवा करः ॥२६॥ त्रिपताकस्तदा प्राहुः करिहस्तमिमं बुधाः । 277
इहैकवचने मानं मुनेर्वचनमेव हि ॥२६॥ जब ऊपर उठा हुआ एक लता हस्त दोनों पाश्वों में झूले की तरह झूले और दूसरा हाथ खटकास्य या त्रिपताक मुद्रा में कान पर रहे, तब बुधजन उसे करिहस्त कहते हैं । यहाँ एकवचन (अर्थात् एक ही हस्त के प्रयोग) में भरत मुनि का वचन प्रमाण है। . ९. रेचित हस्त
प्रसारितौ तथौत्तानतलौ हस्तौ तु रेचितौ। 278 द्रुतभ्रान्तौ हंसपक्षावथवा रेचितौ मतौ ॥२७॥ यद्वानयोमिलित्वामू लक्ष्मणी लक्ष्म सम्मतम् ।
हिरण्यकशिपोर्वक्षो दारणे नहरेर्मतौ ॥२७१॥ जब दोनों करतलों को उत्तान कर फैला दिया जाय तो उन्हें रेचित हस्त कहते हैं । अथवा हंसपक्ष हस्तों को द्रुत गति से घुमाने पर वे रेचित हस्त बन जाते हैं । अथवा इन दोनों हस्तों को मिला कर प्रयोग करने में वे लक्ष्मण हस्त कहलाते हैं, जो लक्ष्मण को, और हिरण्यकशिपु के वक्षःस्थल को विदीर्ण करने में नृसिंह भगवान को अभीष्ट थे।
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