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हस्त प्रकरण
पर रख देना चाहिए । घर का भाव दिखाने में उसके निम्न भाग को नीचे की ओर करके, कुहनी को कुछ मोड़ कर, हृदय पर रखना चाहिए ।
अन्तःपुरे वामभागस्थितः
कार्योऽथ
कार्मुके ।
पार्श्वोत्थितः प्रयोक्तव्यः पराङ्मुखतलाङ्गुलिः ॥ २२६ ॥
अन्तःपुर के अभिनय में उक्त हस्त को वाम भाग में अवस्थित करना चाहिए और धनुष के अभिनय में उसकी उँगलियों को पीछे की ओर फेरकर बगल से उठाते हुए प्रदर्शित करना चाहिए ।
४. गजदन्त हस्त और उसका विनियोग
मध्यं
सर्पशीर्षो करौ स्कन्ध कूर्परयोर्मिथः । दधाते चेत्तदा प्रोक्तो गजदन्ताभिधः करः ॥ २२७॥
यदि दोनों सर्पशीर्ष हस्त परस्पर कन्धे और कोहनी के मध्य भाग को धारण करें तब उस मुद्रा को गजदन्त हस्त कहते हैं ।
स्कन्धस्थौ
सर्पशीर्षो
वर-वधू
चेदितरेतरसम्मुखौ । तथाऽपरे ॥ २२८ ॥
कुञ्चत्कूर्पर कौ
प्राहुर्गजदन्तं
कुछ आचार्यों का कहना है कि यदि दोनों सर्पशीर्ष हस्त कन्धे पर अवस्थित होकर एक-दूसरे के आमने सामने रहें, और उनकी कोहनियाँ मुड़ी रहें, तब उस मुद्रा को गजदन्त हस्त कहते हैं । नयने स
वरवध्वोविवाहार्थं
प्रयुज्यते ।
को विवाहार्थं ले जाने के अभिनय में गजदन्त हस्त का विनियोग होता है । भारस्योद्वहने स्तम्भग्रहणे च अधः शैलशिलोत्पाटे करः कार्यो
वीजनों के अभिमत से बोझा ढोने, खूंटा पकड़ने, आने-जाने और में उक्त हस्त का प्रयोग करना चाहिए ।
श्रस्यान्येsभिनया
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धीरैर्विज्ञेयाः शास्त्रदृष्टितः ॥ २३०॥
गजदन्तहस्त के शास्त्र दृष्टि से अन्य अभिनय प्रयोगों को विद्वानों द्वारा जान लेना चाहिए । ५. निषेध हस्त और उसका विनियोग
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कपित्थं मुकुलं हस्तं परिवेष्ट्य यदा स्थितः । तदा निषधनामासौ
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गतागते ॥२२६॥ विचक्षणैः । पर्वतशिला के उखाड़ने के अभिनय
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