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नत्याध्यायः यदि एक हाथ को कपित्थ मुद्रा में बना कर उससे दूसरे मकल हस्त को परिवेष्टित कर अवस्थित किया जाय तो उसे निषध हस्त कहते हैं ।
-सम्यक्स्थापितवस्तुनि ॥२३१॥ निष्पेषणे तथा सत्यमिदमित्यपि कीर्तने । 238
सम्यक्तया च शास्त्रार्थस्वीकारेऽपि प्रकीर्तितः ॥२३२॥ भली भांति स्थापित की गयी वस्तु, पीसने, 'यह सत्य है' इस प्रकार के कथन और सम्यक प्रकार से शास्त्रार्थ स्वीकार करने के अभिनय में निषध हस्त का विनियोग होता है।
पूर्वोक्तं गजदन्तं तु निषधं संजगुः परे। 239
गर्वगाम्भीर्यधैर्यादिष्वसौ शौर्ये च कीर्तितः ॥२३३॥ कुछ आचार्य पूर्वोक्त गजदन्त हस्त को ही निषध हस्त कहते हैं । गर्व, गाम्भीर्य, धैर्य और वीरता आदि के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ६. पुष्पपुट हस्त और उसका विनियोग
बाह्यपार्श्वसुसंश्लिष्टौ सर्पशीर्षो यदा करौ। 240
तदा पुष्पपुटौ हस्तोऽशोकमल्लेन कीर्तितः ॥२३४॥ यदि दोनों सर्वशीर्ष हस्तों के वाह्य पाश्वों को भली भाँति मिला दिया जाय तो, अशोकमल्ल के मत से, उस मुद्रा को पुष्पपुट हस्त कहा जाता है।
पुष्पधान्यजलादोनामर्पणे ग्रहणेऽपि च । 241
पुष्पाञ्जलौ प्रसादे चोपायनेऽपि स कीर्तितः ॥२३५॥ फूल, धान्य और जल आदि के देने-लेने, पुष्पांजलि, प्रसन्नता तथा उपहार के अभिनय में पुष्पपुट हस्त का विनियोग होता है। ७. खटकावर्षन हस्त और उसका विनियोग
अन्योन्याभिमुखौ हस्तौ खटकामुखसंज्ञितौ ।। 242 यदा यद्वा स्वस्तिकौ तौ मणिबन्धस्थितौ तथा ॥२३६॥
खटकांवर्धमानोऽसौयदि दोनों खटकामुख हस्तों को एक-दूसरे के आमने-सामने कर दिया जाय; अथवा अन्योन्याभिमुख करके दोनों स्वस्तिक हस्तों को परस्पर कलाइयों पर अवस्थित किया जाय, तो उसे खटकावर्धन हस्त कहते हैं।